Blogvani.com आपमरूदा....: DIVORCE is a due need in marriages based on LOVE !!!

Sunday, June 30, 2013

DIVORCE is a due need in marriages based on LOVE !!!


एक समय में भारतीय विवाह व्यवस्था जितना सरल अौर स्थिर था अाज वो उतना ही जटिल अौर अस्थिर हो गया है । 
अाखिर किसी भी समाज को विवाह की जरुरत क्यूं है ? ... सीधा जबाब है ... दो अात्माअों या व्यक्तियों या शरीरों के परस्पर वैध मिलन के लिये, जो एक बुनियादी अौर नैशर्गिक जरूरत है, शारीरिक अौर श्रृजन कि दृष्टि से ... अौर लम्बे समय तक स्थिर व बेहतर जीवन व्यवस्था के लिये । अब अगर ऐसे में कोई ये कहे कि पिछले पाँच हज़ार साल से अाने वाले पाँच हज़ार साल तक इन दोनों का एक साथ मिल पाना संभव नहीं तब समस्या अौर गंभीर हो जाती है । अब ऐसे में एक साधारण व्यक्ति कैसे निर्णय ले कि विवाह का अाधार शारीरिक(सामाजिक) हो या प्रेम का ? ... लिया जा सकता है निर्णय अगर हम समझ पायें कि शारीरिक(सामाजिक) एवं प्रेम के अाधार में क्या बुनियादी फर्क है । अौर सैकड़ो वर्षों प्रचलन में चला अा रहा शारीरिक बुनियाद पर अाधारित विवाह कितना सक्षम है ठोस अौर लम्बे सम्बंध के लिये ।
कायेदे से देखा जाये तो विवाह दो शरीरों का हो सकता है ... दो अात्माअों का विवाह संभव नहीं ... दो अात्माअों का प्रेम हो सकता है । अगर प्रेम से विवाह निकलता हो तब तो प्रेम एक गहरा अर्थ ले लेता है  ... लेकिन अगर विवाह दो पंडितों अौर दो ज्योतिषियों के हिसाब किताब से निकलता हो, या जाति के विचार से निकलता हो या धन के विचार से निकलता हो तो वैसा विवाह कभी भी शरीर से गहरा नहीं जा सकता । लेकिन ऐसे विवाह का एक फायेदा है ... शरीर जिन समाजों में विवाह का अाधार है उनमें विवाह स्थिर होगा ... जीवन भर चल जायेगा । क्युंकि शरीर अस्थिर चीज़ नहीं है ... शरीर बहुत स्थिर चीज़ है उसमें परिवर्तन बहुत धीरे धीरे अाता है अौर पता भी नहीं चलता ... शरीर जड़ता का तल है । इसलिए जिन समाजों ने ये चाहा की विवाह स्थिर हो ... एक ही विवाह काफी हो जिवन भर के लिये, बदलाहट की जरुरत ना पड़े ... उनको प्रेम अलग कर देना पड़ा । क्योंकि प्रेम का सम्बंध सीधे  मन से होता है ... अौर मन चंचल है ... जो समाज प्रेम की बुनियाद पर विवाह को निर्मित करेंगे उन समाजों में तलाक अनिवार्य होगा । उन समाजों में विवाह परिवर्तित होगा ... विवाह स्थायी व्यवस्था नहीं हो सकती । क्योंकि प्रेम तरल है, मन चंचल है, शरीर स्थिर अौर जड़ है ... अापके घर में एक पत्थर पड़ा हुअा है ... सुबह पत्थर पड़ा था, सांझ तक वहीं पड़ा रहेगा ... सुबह फूल खिला था, सांझ तक मुरझा जायेगा अौर गिर जायेगा !! फूल ज़िन्दा है ... जन्मेगा ... जियेगा ... मरेगा !! पत्थर मुर्दा है ... वैसे का वैसा सुबह पड़ा था ... वैसे ही शाम को भी पड़ा रहेगा ... पत्थर बहुत स्थिर है । विवाह पत्थर की तरह है । शरीर के तल पर जो विवाह है वो स्थिरता लाता है ... समाज के हित में है ... लेकिन एक एक व्यक्ति के अहित में है, कयोंकि वो अस्थिरता शरीर के तल पर लायी गयी है, अौर प्रेम से बचा गया है ... इसलिये शरीर से ज्यादा पति अौर पत्नी का मिलन नहीं पहुंच पाता गहरे में । एक यांत्रिक रूटीन हो जाता है, उस अनुभव को रीपीट करते रहते हैं अौर जड़ होते चले जाते हैं । लेकिन उससे ज्यादा गहराई कभी नहीं मिलती संबन्ध या मिलन की । जहां प्रेम के बिना विवाह होता है उस विवाह में अौर वेश्या के यहां जाने में बुनियादी भेद नहीं ... थोड़ा सा भेद है । वेश्या को अाप एक दिन के लिये शरीर से स्वीकारते हैं अौर पत्नी को अाप जीवन भर के लिये शरीर से स्वीकारते हैं । ज्यादा फर्क नहीं है ... जहां प्रेम नहीं है वहां मिलन कि मजबूरी है ... चाहे वो एक दिन की मजबूरी हो या पूरी उम्र की । हालांकि साथ रहने से एक तरह का पारस्परिक सम्बंध हो जाता है , लोग उसी को प्रेम समझ लेते हैं, जबकि वो प्रेम नहीं है । शर्तिया वो वैसा अात्मा तृप्त करने वाला प्रेम नहीं जिसकी खोज की अाड़ में विवाह से पूर्व हम कई परिक्षणों से भी नहीं हिचकते । शरीर के अाधार पर विवाह में शरीर के तल से गहरा सम्बंध कभी भी उत्पन्न नहीं हो पाता अौर अात्मा अतृप्त ही रह जाती है । 
जो लोग प्रेम की बुनियाद पर विवाह करते हैं उनका मिलन शरीर के तल से थोड़ा गहरा जाता है । वो मन तक जाता है ... उसकी गहराई मनोवैज्ञानिक है । लेकिन विवाह में बंधते ही उनकी दशा भी जड़ हो जाती है ... अौर रोज रोज पुनरुक्त होने से वो भी शरीर के तल पर अा जाता है, अौर यांत्रिक हो जाता है । पश्चिम नें जो व्यवस्था विकसित की है दो सौ वर्षों में प्रेम विवाह की वो मानसिक तल तक ले जाती मिलन को ... लेकिन उसका असर ये है कि वहां समाज अस्त व्यस्त हो गया है । कयोंकि मन का कोई भरोसा नहीं है ... वो अाज कुछ पसंद करता है अौर कल उसमें एक नयी चाह पनपने लगती है ... सुबह कुछ कहता है, सांझ कुछ कहने लगता है ... घड़ी भर पहले कुछ कहता है, घड़ी भर बाद कुछ अौर कहने लगता है । शायद अापने सुना होगा की वायरन ने जब शादी की ... तो कहते हैं कि तब तक वो कोई साठ - सत्तर स्त्रियों से सम्बंध बना चुका था । एक स्त्री ने उसे मजबूर भी कर दिया विवाह के लिये । अौर जब वो चर्च से बाहर अा रहा था विवाह कर अपनी पत्नी का हाथ पकड़े, घंटीयां बज रही है चर्च की मोमबत्तीयां जल रही हैं । अभी जो मित्र बधाई देने अाये थे वो विदा हो रहें हैं ... अौर वो अपनी पत्नी के साथ सामने खड़ी घोड़ा गाड़ी में बैठने जा रहा है ... तभी उसे चर्च के सामने ही एक अौर स्त्री जाती हुयी दीखी ... एक छन के लिये वो भूल गया अपनी पत्नी को, उसके हाथ को, उस विवाह को ... सारा प्राण उस स्त्री का पीछा करने लगा । जाके वो गाड़ी में बैठा बहुत ईमानदार अादमी रहा होगा उसने पत्नी से कहा कि तुमने कुछ ध्यान दिया, एक अजीब घटना घट गयी ... कल तक मेरा तुझसे विवाह नहीं हुया था तो विचार करता था कि तुम मुझे मिल पायेगी या नहीं ... तेरे सिवाय मुझे कोई नहीं दिखाई पड़ता था ... अौर जब विवाह हो गया है, मैं तुमहारा हाथ पकड़े नीचे उतर रहा हूँ, मुझे एक स्त्री दिखाई पड़ी गाड़ी के उस तरफ जाते हुये ... मैं तुम्हें भूल गया अौर मेरा मन उस स्त्री का पीछा करने लगा ... अौर एक छन को मुझे लगा कि काश ये स्त्री मुझे मिल जाये !!! मन इतना चंचल है !!   
तो जिन लोगों को समाज को व्यवस्थित रखना था उन्होने मन के तल पर मिलन को नहीं जाने दिया ... उसे रोक लिया शरीर के तल पर ... विवाह करो ! ... प्रेम नहीं !! 
शरीर के तल पर स्थिरता हो सकती है ... मन के तल पर स्थिरता बहुत मुश्किल है !!   
हजारों साल पुराने शरीर अाधारित पारम्परिक वैवाहिक व्यवस्था को हमने पिछले कई सालों से जीर्ण शीर्ण करार दे एक सिरे नकार दिया है ... अौर प्रेम या मन अाधारित अस्थिर विवाह के लिये अभी हम तैयार नहीं सामाजिक अौर मानसिक रूप में फिर ऐसे में सवाल उठता है कि अाज भारतीय समाज में विवाह का अाधार क्या हो  ? क्युंकि जबरदस्ती के मिले जुले अाधार वाले विवाहों के भी कोई बहुत खुशनुमा परिणाम नहीं दिखे हैं पिछले कई सालों से ... अौर विपरीत प्रकृति के दो अाधारों को मिलाकर एक नया अाधार बनाना कम विस्फोटक नहीं भविष्य के लिये !! उदाहरण के लिये पश्चिम को देख लें !!
फिर कहीं ये अागाज़ तो नहीं विवाह व्यवस्था पर सवालिया निशान का भविष्य के लिये ..... ???? 

नोट : ब्लाग में ज्यादातर तर्क अाचार्य रजनीश के स्पीच " संभोग से समाधी तक " से लिये गये हैं          


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