Blogvani.com आपमरूदा....: रेप, रेप होता है … बैचलर, मैरिटल या डिवोर्सड नहीं !!!

Friday, May 15, 2015

रेप, रेप होता है … बैचलर, मैरिटल या डिवोर्सड नहीं !!!


हमारे आसपास के कुछ पत्रकारों के लिये विशेष लेख   

मित्रों वैसे तो ये ऐसा मुद्दा है जिस पर कभी निष्पक्ष रूप से बहस हो ही नहीं सकता खासकर हिंदुस्तान जैसे देश में  … क्यूंकि मैरिटल रेप सीधा महिलाओं से जुड़ा मुद्दा बना दिया गया और भारत में अगर आपने महिला विरोध में कुछ भी कहा नहीं, की गए तेल लेने  … आईये बताता हूँ कैसे ?

        मेरे कुछ सवाल हैं अपने उन पत्रकार मित्रों (महिला और पुरुष दोनों) से जो बिना सोचे समझे अनधकाहे ज्ञान बघारने लगते हैं इस तरह के मुद्दों पर  … वो भी दो चार आस पास के केस स्टडीज़ को समेट कर  

महानुभावों आप किस समाज में में मैरिटल रेप पर कानून बनाने की वकालत कर रहें है  … उस समाज में जहां सेक्स या शादीशुदा जिंदगी की शुरुआत बिना रेप जैसी स्थिति से नहीं हो सकतीअगर इस समाज के पति उस पहली रात को थोड़ी जबरदस्ती करना छोड़ दें तो आपको क्या लगता है कितनी फीसदी लड़कियां अपना कौमार्य छोड़ पायेंगी ? और हर पति सुहाग रात की अगली सुबह ही सलाखों के पीछे होगा ?

जनाब जिस समाज में सेक्स जैसी बुनियादी जरूरत आज भी हौआ हो, जिस समाज की महिलायें आज के दौड़ में भी सेक्स को सिर्फ पति को खुश करने जरूरत के हिसाब से देखती होंजिस समाज में आज भी महिलायें अपने पुरुष मित्र या पति से सेक्स के पहले अनुरोध की ईक्षा ही नहीं रखती, बल्कि अपना अधिकार समझती हो  … और आखिरी में ये भूलिए की ये वही समाज है जहां अगर किसी कारण वश पति ने कुछ लम्बे समय तक सेक्स की ईक्षा नहीं जताई तो पत्नी का तीखा सवाल वो भी पूरे अधिकार से की " तुम्हारा किसी और के साथ तो चक्कर नहीं चल रहा !! "  … क्या आप लोगों को लगता है कि ऐसे समाज में मैरिटल रेप पर कानून का कोई मतलब है ??? 

चलिए आप बुद्धिजीवी लोग हैं इतनी जल्दी तो क्या, अंत तक नहीं मानेंगे  … आगे बढ़ते हैं  :)

मान लिया हिंदुस्तान अब उस कगार पर गया है जहां मैरिटल रेप जैसे कानून की जरूरत है  … ऐसे में सवाल ये उठता है मैरिटल रेप जैसे अपराध को मापने के क्या मापदंड होंगे ? मतलब कब ये माना जायेगा की ये आपसी सहमति से किया गया मैरिटल लव या सेक्स था और कब ये रेप हो गया ?

थोड़ा टटोलते हैं  … 

1.  क्या गाजे - बाजे और लाखों खर्च कर अग्नि के सात फेरे लेने साथ, जो एक गुपचुप रजामंदी नव दंपत्ति दुसरे को देते आये हैं, अब उसे सिर्फ एक घर में रहने, एक साथ शॉपिंग करने, खाना खाने, फिल्म देखने जैसे जरूरतों तक के लिए ही रजामंदी मानी जाये ? क्या अब पहले दिन से लेकर सेक्स की इक्षा ख़त्म होने तक जीवन भर दोनों पक्ष रोज या शुरूआती दिनों में तो, एक ही दिन में कई बार एक दुसरे से रजामंदी लेकर ही सेक्स के लिए आगे बढ़ेंगे …  बड़ा सवाल ! रजामंदी का तरीका क्या हो  ? … देखिये चूँकि अब सवाल अपराध होने और सज़ा पाने का है सो ज़ुबानी रज़ामंदी पर विश्वास नहीं किया जा सकता क्यूंकि जुबां पलटते देर कितनी लगती है  … तो ऐसे में लिखित रज़ामंदी ही चल पायेगी फिर सवाल उठता है कि क्या सरकार या सोसाइटी किसी खास किस्म का कन्सेंट प्रोफार्मा और उसे सहेज के रखने की जगह बना के दोनों दंपत्ति को देगा, ताकि हर बार का हिसाब किताब संभला रहे  … वरना क्या पता झगड़ा किसी और बात पर दिसंबर में हो और पत्नी पिछले 10 जून की शिकायत ठोंक दे, की उस दिन इन्होने बिना मेरी इक्षा से मेरे साथ सेक्स किया थाअब ऐसे में पति या तो उस दिन का कन्सेंट लेटर दे, या जाये जेल मेरा एक सुझाव हैक्यों नहीं मैरिज दफ्तर में ही एक नया विंग खोल दें " मैरिटल सेक्स कन्सेंट सेल "  दोनों व्यक्ति रोजमर्रा के अपने - अपने कन्सेंट, पोस्ट -मेल के ज़रिये यहां भेज दिया करें बस सिर्फ उन दिनों का ध्यान रखना होगा जब कभी ये छुट्टी बिताने कहीं ऐसी जगह जाएँ जहां से तुरंत फुरन्त में मेल  सुविधा होऐसे में कुछ एडवांस में मेल ड्राफ्ट कर किसी अपने को छोड़ जाएँ वो अपनी विवेक के हिसाब से उसे सेल को भेजता रहे

2. चलिए कन्सेंट का तो मसला हो गया  … अब बात है आग्रह करने की क्या नए कानून में सेक्स आग्रह पर भी कुछ ख़ास टिपण्णी होगी ? जब शादी के बाद भी बिना मर्ज़ी का सेक्स अपराध होने लगा तो क्या बिना इक्षा के अगर कोई पति अपनी पत्नी से सेक्स के लिए आग्रह करे उसे " सेक्सुअल हरासमेंट " नहीं माना जायेगा ? कायेदे से तो माना जाना चाहिये ... लेकिन चलिये चुकिं मामला शादी शुदा है सो छोड़ा जा सकता है ।

3. अब बात अाती है सेक्स की जो सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो सेक्स या प्यार कहा जायेगा ... या फिर जिस दिन पत्नी का मूड बिगड़ा पति सीधे जेल जायेगा ! अाईये इस पर भी विचार कर ही डालें ...
मुझे सच में ये चिंता है कि मैरिटल रेप कानून से खौफजदा एक पति पहली रात कैसे हिम्मत जुटा पायेगा अपनी पत्नी का कौमार्य भंग करने की ? माना उसने लिखित में सेक्स कॉन्सेंट दिया हुअा है लेकिन उस पूरी प्रक्रिया में जो पीड़ा होगी उसका हिसाब-किताब कैसे होगा ? ये कैसे पता चलेगा कि किस सीमा तक की पीड़ा मैरिटल सेक्स या प्यार है अौर किस सीमा के बाद मैरिटल रेप ? अौर अापको पता ही होगा कि हर महिला में इस पीड़ा का स्तर अलग-अलग होता है ... फिर क्या नये कानून में इस खास क्षण के लिये कोई विशेष प्रावधान होगा ? क्या कोई ऐसा पारिमाण बन सकता है जो इस पीड़ा को माप सके ? चलो ऐसे में अगर जुगाड़ लगा के कोई एक परिमाण बना भी लिया जाये तो अगले जोड़े पर वो फेल ... अौर लौंडा गया जेल !! तो जगतज्ञानीयों अापको नहीं लगता कि ऐसी सूरत में हर लड़का शादी के महीनों पहले से सोमवार का चालिसा उपवास रखेगा, सो उसे पहले से कौमार्य भंग हुयी पत्नी मिले !! फिर सोचिये उस हनीमून गिफ्ट की अहमियत अौर यादें क्या रह जायेगीं, जिसके लिये अाज भी  करोड़ो भारतीय युगल अपना कौमार्य संजोगे रखते हैं ? क्या उस पीड़ा के साथ जीवन डगर के पहले पग पर, एक दुसरे को अात्मसाथ करने वाले उस क्षण के लिये कोई प्रावधान कर सकेगा मैरिटल रेप कानून ? मुझे तो नहीं लगता ...

 4. मित्रों सेक्स एक बहुत ही व्यतिगत अौर बुनियादी जरूरत है ... अापको खुद भी पता नहीं होता कि कौन सा क्षण, छुअन या अासन अापको या अापके पार्टनर को उस अानंद तक पहुंचा दे । हर व्यक्ति में सेक्स की क्षमता अौर ईक्क्षित अानंद का अाधार अलग -अलग होता है ... इसे भारतीय पुरातन विज्ञान अौर विदेशी मॉडर्न साईन्स भी मानता है । विदेशों में तो फिर भी इस बुनियादी जरुरत की पूर्ति व्यक्ति थोड़ी सहजता से कर सकता है ... अौर उसे वहां अनैतिक नहीं माना जाता । लेकिन हम जिस समाज की बात कर रहें हैं उसमें तो शादी ही शरीर के इस बुनियादी जरुरत को पूरा करने का एक मात्र साधन है । 21वीं शताब्दी में जीने वाला हमारा ये समाज, अाज भी शादी से पहले या बाहर के सेक्स संबन्ध को नैतिक नहीं मानता ... फिर ऐसे में अापको लगता है कि उस मात्र एक जगह पर भी मैरिटल रेप जैसे कानून की एक नयी तलवार उन जोड़ो पर लटका दी जाये ? बाहर पटाने पर समाज द्वारा व्यभिचारी माना जाना ... कार्ल गर्ल के साथ होने पर छापे पर जाना अौर वेश्यालयों में गुप्त रोग के चपेट में अाने डर पहले से ही कम है क्या, कि अब बेडरूम में भी व्यक्ति इस डर में जिये कि रति क्रिया के दौरान पत्नि कि थोड़ी भी चींख निकली नहीं कि नीचे 100 नम्बर का सॉयरन घनघनाने लगेगा ? 

खैर छोड़िये ... हमारे देश में कोई भी कानून या बहस कभी इतने गहन सोच अौर दूरदर्शिता को ध्यान में रखकर बने हैं, जो अाज हम उम्मीद करें ... अगर ऐसा होता तो कम से कम 498A अौर डोमेस्टिक वॉयलेन्स जैसे उपयोगी कानून का स्वरूप वो न होता जो अाज है । चलिये ये हम अपने उन बुध्धिजीवी बंधुअों पर छोड़ देते हैं जिनके लिये मैरिटल रेप सिर्फ अौर सिर्फ एक सनसनी फैलाने वाला मुद्दा है । कानून बने या ना बने इससे इनका कोई सरोकार नहीं ... हां इस पर ढोल खूब पीटा जाये, वो एक भी मौका ये नहीं छोड़ना चाहते ... क्या करें इनकी भी मज़बुरी है टीअारपी अौर क्लिक्स या हिट्स की तलवार इनके उपर भी हर वक्त लटकते रहती है । ये इनका काम है अौर इन्हें करने देते हैं ... लेकिन मेरा फिर एक सवाल है ... मैरिटल रेप की पैरोकारी करने वाले इन बंधुअों में से कितनों को पता है कि सेक्स होता क्या है, इसके कितने स्वरूप हैं अौर ये कितना जरूरी है ? मुझे नहीं उम्मीद है कि इसकी जानकारी इनमें से ज्यादातर लोगों को होगी !  सेक्स एक नैसर्गिक लक्षण अौर स्वरूप में अलग-अलग जीव के साथ उसके जन्म के साथ ही जन्म लेता है ... ऐसे में बिना जाने उसपर किसी भी तरह की पाबन्दी लगाना उल्टा फल देने वाला हो सकता है ।

सो अाईये मित्रों बहुत ही संक्षिप्त में सेक्स अौर उसके स्वरूप को समझने का प्रयास करें ... ये जरूरी है, वर्ना ये वही बात होगी कि पूरी महाभारत देख लिया पर पता ही नहीं कि पांचाली के कितने पति थे । 

मित्रों पूरे विश्व में बेहतर पारस्परिक संबन्ध अौर सेक्स के उपर सबसे पुराना व सबसे सटीक (70-80 फिसदी) अगर कोई व्याकरण मौजूद है तो वो "कामसुत्र " है ... विश्व भर में इसकी उपलब्धता अौर मान्यता है, अौर विश्व भर के शोधकर्ता इसे अाज भी उपयोगी मानते हैं । मैं सेक्स के उपर अपना टुच्चा ज्ञान न पेलते हुये इसी किताब के हवाले से अापको सेक्स अौर उसका स्वरूप समझाने की कोशिश कर रहा हूं ... जिसे लगभग 5000 साल पहले अाचार्य वात्सायन बड़े मेहनत अौर शोध के बाद इस हसरत से लिखा था कि अागे ये भारतीय समाज के काम अा सके । इस किताब के अाधार पर पूरे संसार में मात्र तीन प्रकार के पुरुष अौर तीन ही प्रकार की स्त्रीयां होती हैं ... पुरूष के प्रकार हैं - शष(खरगोश), वृष(बैल) अौर अश्व(घोड़ा) ... इसी प्रकार स्त्रीयों के प्रकार हैं - मृगी(हिरणी), बड़वा(गाय) अौर हस्तिनी(हथिनी) ... 
अौर खासकर शारीरिक संबन्ध के हिसााब से इनके उपयुक्त मेल इस प्रकार हैं ...

शष(खरगोश) के साथ मृगी(हिरणी)
वृष(बैल) के साथ बड़वा(गाय)  
अश्व(घोड़ा) के साथ हस्तिनी(हथिनी) 

ये मेल मूल रूप से दोनों के शारीरिक गठन, नैसर्गिक व्यब्हार एवं गुप्तांगों के लम्बाई अौर गहराई के अाधार पर किया गया है । विस्तार से जानने के ईक्छुक "कामसुत्र " के पहले कुछ पन्ने पलट लें ... ये किताब हिन्दी अौर अंग्रेजी दोनों में कम कीमत पर सहज उपलब्ध है ... मित्रों अगर मैरिटल रेप जैसे दंश से बचना है तो इतनी मेहनत तो अापकी भी बनती है । 

उपरलिखित जोड़ों के हिसाब से ये सभी रति क्रिया में अलग-अलग तरह से प्रवृत्त होते हैं  ... जहां शष-मृगी धीमी गति अौर संकोची स्वभाव के साथ कम समय के लिये, तो वहीं वृष-बड़वा गतिशील अौर खुले स्वभाव के साथ लंबे समय तक इस क्रिया में प्रवृत्त रह सकते हैं ... जबकि अश्व-हस्तिनी काफी गति से एक दुसरे पर बल प्रयोग करते हुये लंबे समय तक रति क्रिया कर सकते हैं ... यहां तक कि कई बार इस दौरान ये दोनों एक दुसरे के प्रति अाक्रामक भी हो जाते हैं । कामसुत्र में हर एक जोड़े के लिये अलग-अलग अासनों एवं क्रियाअों के विस्तृत उल्लेख है ... अौर अलग-अलग जोड़ों के लिये सलाह व निषेध दोनों है । चुम्बन(किसींग), केश कर्षण(बालों को खींचना), नख छेदन(लव मार्क), दंत छेदन(लव बाईट), मुख मैथुन(अोरल सेक्स) यहां तक की गुदा मैथुन(अनल सेक्स) को भी ये किताब गलत नहीं बताता ... लेकिन हां उसके लिये साथी की मंजूरी के साथ, उसे उस क्रिया के लिये तैयार करने की, अौर क्रिया को करने की सही विधि का उल्लेख भी है, जिससे साथी को कम से कम पीड़ा हो अौर वो भी उस अानंद में बराबर का हिस्सेदार हो ... साथ ही कुछ खास किस्म के लोगों के लिये कुछ खास क्रियाअों पर निषेध भी लगाता है । अौर अापकी जानकारी के लिये बता दूं कि अाज पूरे विश्व में सेक्स पर होने वाले हर शोध अौर साहित्य का अधार कहीं न कहीं कामसुत्र ही है !             
ऐसे में ये विचार का विषय है कि जिस क्रिया का नैशर्गिक लक्षण अौर स्वरूप इतना जटिल अौर विविधता भरा हो ... उस पर सीधे किसी कानून को बिना विचारे कैसे थोपा जा सकता है ?

लेकिन अब ये भी सवाल है कि जिन रश्मि अौर पूजा जैसी महिलाअों ज़िक्र बीबीसी के रिपोर्ट में किया गया उनका क्या होगा ? ... क्या कोर्ट के उस दलील को मान लिया जाये कि, भारतीय समाज में शादी एक पवित्र बंधन है इसलिये इसे रेप नहीं माना जा सकता ? कुछ हद तक ये बात सही भी है ... अाईये विचार करें ...

मित्रों रेप की स्थिति में पीड़ित का एक पल के लिये भी मंजूरी नहीं होती ... चाहे उसके साथ रेप एक बार हुअा हो या उसे बंदी बनाकर बार-बार उसका मर्दन किया गया हो । लेकिन मुझे नहीं लगता कि रश्मि अौर पूजा जैसी महिलाअों के साथ ऐसा कुछ हुअा होगा ... अाखिर में अाकर बेशक उनकी स्थिति रेप या उससे भी बद्तर हो चुकी होगी, लेकिन शुरुअात में शादी के बंधन के साथ ही इन्होने अपनी रज़ामंदी दर्ज करायी थी यौन क्रिया में संलिप्त होने के लिये । हो सकता है अपने पतियों के इस व्यब्हार का पता इन्हें पहली रात ही हो गया हो ... लेकिन फिर भी एक नई उम्मीद के साथ थोड़े कम मन से ही सही लेकिन अगली रात इन्होने उसे स्वीकारा ... शायद सोच ये रही हो कि अाज वो मुझे समझेगा अौर उसी तरह प्यार से मेरे साथ संलग्न होगा, जिस तरह होने के लिये मैंने इसे मंजूरी दी है ... अौर इसी सोच के साथ दिन, महीनों व साल गुजरने पर महसूस हुअा कि स्थिति अब रेप की या रेप जैसी हो गयी है । अब इसी पक्ष को उलट कर देखते हैं ... क्या पता ज्यादा कामुक अौर स्वभाव से वृष या अश्व पति ने भी अपनी गति उतनी ही बनाये रखा इस उम्मीद पर, कि धीरे-धीरे ये मेरे नैशर्गिक लक्षण को समझ लेगी अौर फिर अाराम से उसका वहन करने लगेगी ।
अगर थोड़ा समय लगा कर इन केसों का अध्धयन किया जाये तो जिन 10 फिसदी केसों का हवाला इस बीबीसी के रिपोर्ट में दिया गया है, उनमें ज्यादातर केसों में स्थिति लगभग यही रही होगी ... लेकिन रश्मि की कहानी को सुनने के बाद ऐसा लगता है कि वो अलग या अपवाद हैं ... ये जघन्य है ! ... इसकी ईजाजत ना तो सेक्स का कोई ग्रामर देता, न समाज अौर ना ही कानून । यहां बेशक एक कानून की जरूरत है ... लेकिन उसे मैरिटल रेप कानून नहीं कहा जा सकता !! क्युंकि थोड़ा संवेदनशील होते हुये अपवादों (जो काफी कम हैं) को अलग रखकर इस पर विषय पर गहन चिंतन करें, अौर मौजूद सेक्स व्याकरणों को अाधार मानते हुये सोचें कि अगर स्थिति ऐसी ही रही होगी, जैसा उपर वर्णित है ... तो किस एंगल से अापको ये रेप लगता है ? अौर इसमें किसका दोष है ?

दोष है ... हमारे अाज के समाज में शादी जैसी उस संस्था का जो एक रात के उत्सव के बाद हमें सेक्स करने की अाज़ादी तो दे देता है, लेकिन शादी से पहले एक दिन भी सेक्स को समझने के लिये प्रेरित नहीं करता !! 

दोष है ... हमारे मां-बाप का जो समाज के साथ ताल मिलाते हुये हमें जीवन साथी चुनने की तो छूट तो दे देते हैं, लेकिन अपने अनुभवों के अाधार कभी हमसे खुल के बात नहीं करते कि कैसा सेक्स पार्टनर मेरे लिये उचित होगा !!  

दोष है ... हम पढे लिखे विवेकशीलों का जो बॉय या गर्ल फ्रेंड से झगड़े कि स्थिति में मनोचिकित्सक को संपर्क करने में गर्व महसूस करते हैं, लेकिन किसी सेक्स के जानकार से खुद के बारे में बात करने पर शर्माते हैं !!

मतलब साफ है दोस्तों अगर हम अाज नहीं समझे तो ये समस्या दिन व दिन बड़ी होती जायेगी ... महामारी अगर रोकनी है तो उसके जड़ को ढुढ़ना होगा ... बिमारी के ईलाज साथ-साथ उसके रोकने के उपाय पर भी उसी शिद्दत से काम किया जाना चाहिये । 

अब दो मिनट के लिये मैं दुबारा अपने बुद्धिमान साथियों से मुखातिब होना चाहुंगा ...
महानुभावों एक बात बतायें ... 
एक रेप केस पूरे देश अौर विदेश तक में हंगामा ... 
एक केजरीवाल पर हर चैनल में बवाल ... 
कोर्ट के एक अादेश पर पूरा सोशल मीडिया में उछाल, अौर गालियां खा कर भी उसका जबाब लिखने से नहीं चूकते ...
जब अाप इतनी शिद्दत से किसी मुद्दे को उठाते हो, तो फिर उसे उतनी ही गहराई से समझने में कुछ बिगड़ जायेगा अापका ? दो केस पकड़े, पन्ने या समय के हिसाब से 6 सवाल पूछे, अपने मतलब के 3 लगाये अौर बिना सोचे समझे कह दिया की मैरिटल रेप का कानून बनाअो ... पहले अाप ठीक से मेरिज का मतलब समझते हो ? 

शादी विश्वास के साथ शुरु होती है अौर उसी के भरोसे चलती है ... जिस दिन विश्वास गया उसी दिन मेरिटल स्टेटस भी हिल जाता है । अाप लोगों को क्या लगता है ... कुछ कानून की वजह से अाज हमारे देश में जो शादी की स्थिति है, उसमें एक नया कानून पति-पत्नि के रिश्तों में अौर प्रगाढ़ता बढायेगा ? अगर अापको ऐसा लगता है तो फिर अापके लिये यही कहा जा सकता है " अाप तो अाप ही हैं ... अाप के क्या कहने "

मित्रों मेरा उपर के तर्कों का ये मतलब नहीं कि रश्मि अौर पूजा जैसी महिलाअों को यथास्थिति होना चाहिये ... जल्द से जल्द ऐसा एक कानून हो जो इन महिलाअों को ही नहीं बल्कि पूरूषों को भी ऐसी स्थिति से राहत दिला सके ... क्युकि ऐसा नहीं कि ऐसी स्थिति के शिकार पूरूष नहीं हैं, ये अलग बात है कि पुरूषत्व के चक्कर में बोल नहीं पाते । अाप कानून बना के देखो ... बाढ लग जायेगी अर्जीयों की !!     

हिट्स ललायितों ... दुनियां कितनी भी मॉर्डन हो जाये फिर भी अमरूद के पेड़ पर झटहा फेंकने से अाम नहीं गिरते ... अगर अाम तोड़ना है तो अाम के पेड़ पर ही ढेला मारना होगा !!   
सेक्स, सेक्स होता है ... रेप, रेप ! सेक्स में की गयी थोड़ी ज़ोर-ज़बरदस्ती इस क्रिया का एक हिस्सा है, जो दोनों को अानंद दे सकता है । यकीन नहीं है तो किसी दिन कर के देख लिजीये हम-अाप में ही बहुत से लोग उस परिधि में अा जायेंगे ... अलग-अलग चश्में से अलग-अलग खासकर सामाजिक समस्यायों को देखना ही दूरदर्शिता है ... क्युकि इसका रायता फिर फैलता बुरा है अौर समेटे नहीं सिमटता ... उदाहरण सामने है 498A !! 
फिर 10 फिसदी लोगों के साथ होने वाले समस्या के लिये 90 फिसदी लोगों के उपर तलवार लटका देना कौन सी बुद्धिमानी है ?   
सो रेप अौर सेक्स में अन्तर होता है ... अगर सेक्स में कोई खामी है तो फटाक मुंह उठा के उसे रेप नहीं कह देते !!
चींख-चींख कर "फिफ्टी शेड्स अॉफ ग्रे" को महिलाअों के लिये सेक्स की दुनियां का परिवर्तनकारी ग्रंथ बताने वाले अाप लोग अगर सेक्स अौर रेप में अन्तर नहीं कर पा रहे ... फिर तो वाकई अापकी हालत दयनीय है !!!

रेप, रेप होता है ... बैचलर, मैरिटल या डिवोर्सड् नहीं !!!!


No comments:

Post a Comment