Blogvani.com आपमरूदा....: April 2010

Thursday, April 8, 2010

सेवा ठीक मैं पाऊँ कैसे ... बताऊंगा ... निकाल 50 पैसे ....



 भाई कमाल का देश है भारत ... सोने की चिड़ियाँ ऐसे थोड़े कहा जाता रहा है ... यहाँ कण कण में रुपया व्याप्त है ... बुद्धि लगाओ और लपेटो .... 

आप सोच रहे होंगे की खुर्पेंचूं आज पगला गया .... अनाप सनाप बके जा रहा है ... जिस देश के हर चाय गोष्ठी में मुद्दा गरीबी, बेरोज़गारी या फिर तंगहाली हो, वहां कण कण में रूपया व्याप्त होने की बात करने वाले को पागल ही कहा जायेगा ... लेकिन भाई साहेब जो घटना मेरे साथ घटी, अगर आप के साथ होता, तो मुझसे ज्यादा पगलाते आप... भाई कारण ही ऐसा था .... हुआ यूँ की चार-पांच दिन पहले, अपने मोबाइल के बिल संबंधी जांच हेतु मैंने अपने सेवा दाता के ग्राहक सेवा केंद्र (121 ) पर फ़ोन घुमा दिया ... जब मेरी संतुष्ठी, स्व-उत्तरित विकल्पों से नहीं  हो पाई , तो मैंने मामले की खोद - खाद (Investigation ) की इक्छा से ग्राहक सेवा अधिकारी को संपर्क साधा .... तरीका आज कल थोडा टेढ़ा है ... 1 ,2 , ..4 ,..1 ..2 ... और पता नहीं क्या क्या के बाद  ...9 ... नंबर का विकल्प आता है .... तब जाकर कहीं आप कंनेक्ट हो पाने की स्थिति में होते हैं ... हर बार की तरह मै मानसिक रूप से तैयार था, की अभी अधिकारी संपर्क में आएगा/आएगी और हमारे खोद - खाद (Investigative) मानसिकता से ग्रस्त प्रश्नों पर पहले तो दो तीन मिनट टंगे रहने का अनुरोध करेगा ... और फिर अंततः मुझे संपर्क में लेकर रटा - रटाया जबाब देगा की " माफी चाहूंगा महानुभाव, तुरंत - फुरंत में इसका समाधान उपलब्ध नहीं है ... शिकायत दर्ज कर देता हूँ ... अगले 24 से 48 घंटे में इसका समाधान हो जाएगा ".... लेकिन संपर्क से पहले एक ऐसा विष्फोट हुआ, की मैं सन्न रह गया ...चल श्रवण यन्त्र (मोबाइल) के  श्रवण भाग ( सुनने वाली जगह ) पर उद्घोषण हुआ .." आपने ऐसे विकल्प को चुना है ... जिसके लिए आपको प्रति तीन मिनट 50 पैसे देने होंगे " ...है न विस्फोटक ... हालाँकि आकार आलू बम जैसा, लेकिन असर ऐसा की दिल दिमाग दमदमा दे ... 
मुझे पता है आप सब इस वक्त क्या सोच रहे है ?... मन ही मन कह रहें होंगे की लिखने वाले का नाम "खुर्पेंचू" नहीं "घेन्चू" होना चाहिए ... आठ आने खर्चा और गज भर का पर्चा ... तो मंदी में हर पहली तारीख को, भगवान भरोसे मोटी तनख्वाह घर ले जाने वाले सशंकितों ... आपको क्लीअर कर दूं, की मैंने सेवा केंद्र पर, मधुर कंठी महिला ग्राहक से फोन मट््टका की इक्छा रखकर संपर्क नहीं साधा था ... जो पांच मिनट के 50 रुपये भी गुदगुदी ही देता ... जिस सेवा के लिए हर महीने बिना खोद - खाद, एक मुस्त रकम, सेवा दाता को देर हर्जाना सहित अदा करता हूँ ... उसी सेवा से असंतुष्टी ने मुझे ... 1 ,2 , ..4 ,..1 ..2 ... और पता नहीं क्या - क्या के बाद ... 9 ... के झमेले में खींच लाया था ... तो विचारकों अब आप ही फैसला करें की ... हफ्ते भर पहले तक भी, जहां हाड कंपाऊ इस सेवा केंद्र के झंझटिया संपर्क यातायात में घुसने से पहले ... घंटों हिम्मत हसोतना (दाना दाना समेटना) पड़ता था ... वहीँ 9 नंबर के नाके पर, 50 पैसे चुंगी के उदघोषण को ... विस्फोट की संज्ञा देना यथोचित उचित नहीं है क्या ? ... मैं तो फिर भी बाद अदायगी (Post Paid ) वाला ग्राहक हूँ ... संतोष है की पैसा महीने बाद देना है ... लेकिन उन अग्रिम अदायगी (Pre Paid) वालों के संताप का क्या ... जिनके छोटे - छोटे रीचार्ज का दम ग्राहक सेवा अधिकारी तक पहुँचने में ही निकल जाएगा ... 
तो बांधवों अब आपको काफी क्लीअर हो गया होगा, की कैसे हमारा देश आज भी सोने की चिड़ियाँ है ... यहाँ करोड़ों बी पी एल से नीचे जीने वालों के जेब में व्याप्त है चवन्नी, अठन्नी और रूपया ... बस निकालने वाला हुनरबाज़ चाहिए ... एक लपेटे में करोड़ों अन्दर ....   
वैसे एक बात नहीं पची ... की " आम आदमी का हाथ - अपने साथ " होने का दावा करने वाले राजनेताओं, और आम समस्याओं पर घंटों बहस करवाने वाले पेड ठेकेदारों की कड़ी नज़र, कभी इस तरह की समस्याओं पर क्यूँ नहीं जाती ... क्या वाकई कोई व्यवहारिक मजबूरी है ... जो ये लोग रोज़ मर्रे की इस बड़े नुकसान पहुँचाने वाले अठन्नी - चवन्नी समस्याओं पर, अमूमन चीड - फाड़ बहस से कतराते हैं ... या फिर प्रिंस, आरुशी, तालिबान, भ्रष्ट बाबा, सानिया आदि जैसे अनुपयोगी लेकिन मनोरंजक मुद्दों की बढती संख्या और व्यवसायिक मांग के आगे ... इन तथाकथित छोटे मुद्दों का उचित बहस मंच पर नंबर ही नहीं आ पाता है .... चलिए छोडिये ... राम की महिमा..रामै जाने ... हम इतने भी बड़े खुर्पेंचू नहीं हैं, की कहीं भी अनधाकाहे खुरपेंच कर दें ...
मेरे साथ घटना घटी तो सोचा आपको आगाह कर दूं ... वैसे अगर इसी तरह इंडिया साइन करता रहा तो, एक और खतरे से आपको आगाह कर दूं ... भविष्य में अगर कभी रेलवे पूछताछ खिड़की पर, देर से आने वाली गाड़ी की जानकारी हेतु झांकें, तो पहले से अपना दाहिना हाथ बायीं छाती पर जमा लें ... ऐसा न हो की अपोजिट साइड से 10 रुपये का डिमांड, आपका ब्रम्हांड हिला दे और दिल, अगले 10 धड़कन के बाद दिक्कत महसूस करे ... 
तो मेरे अपने राम भरोसों ... समय रहते संभल ले ... इसमें कोई बुराई नहीं ....

सेवा सही करो तुम अपनी, करना है हमें फ़ोन ...
बिन अठन्नी मैं काहे चिन्हूँ, आप हमारे कोन ...
छोटा रिचार्ज वाला हूँ मैं, तरस ही हमपे खा लो ..
ग्राहक धरम निभाओ अपना, पहले माल निकालो ...  


Tuesday, April 6, 2010

है दम ... तो करो मदद ... जबाब ढूढने में ....


ऑफिस के बाहर चाय-गोष्ठी में आज अचानक एक नया और बड़ा ही तार्किक सवाल खड़ा हो गया .... और सवाल किया था ... 40 के लगभग के हमारे सीनियर ने ... इसलिए विचार अपेक्षित था ... चूँकि सवाल ने हम 35 वालों को गुदगुदा दिया ... सो हम मौन मज़ा ले रहें थे ... एकल सहगामी को किस्मत मान चुके हम सब मे, एक नयी आशा की किरण फडफडा गयी .... " शायद भविष्य में कुछ हसीन पल अभी बचे हैं " ऐसा सोचते हुए हम सब चुप - चाप एक टक उनके चेहरे को देख रहें थे .... उस सवाल का जो नैतिक और उचित जबाब था, शायद वो देकर हम अपने मज़े को मीजना नहीं चाह रहें थे ... और ... जो जबाब हम देना चाह रहें  थे उसे सबसे पहले बोलने में कतरा रहें थे .... डर था की लोग व्यभिचारी न समझ लें ...
अरे मैं भी आतुरता में सवाल तो बताना भूल ही गया ... सवाल था ....
जब लिव-इन और प्री - मैरिटल सेक्स को अब समाज में जगह मिलने जा ही रहा है ... तो क्यूँ न पोस्ट - मैरिटल अफ़ेअर या सेक्स को भी जगह देने के बारे में सोचना चाहिए ... खुलेआम ... बिना किसी सामाजिक और नैतिक दबाब के ....   
चौंक गए न आप .... अगर आप शादी शुदा है तो गुदगुदी आपको भी हो रही होगी .... कोई नहीं ...कोई नहीं ...आप गुदगुदी के मज़े लेते रहें ... मैं आगे बढ़ता हूँ...
हमारे सीनियर जी ने, न सिर्फ सवाल खड़ा किया, वरन तर्क भी ज़ोरदार दिए ... उनका तर्क था ... जिस कार्य को करने के लिए शादी जैसी लक्ष्मण रेखा खींची गयी थी .... उस कार्य को अगर कोई शादी से पहले करे, तो आने वाले भविष्य में किसी को शायद ही एतराज़ हो ... न सिर्फ करे बल्कि, कईयों के साथ करके संतुष्ट होने तक परिक्षण करे... तब भी कोई दिक्कत नहीं है .... आखिर पुरे जीवन का मामला है, ऐसे कैसे डिसीजन ले लें  ... भाई हम क्यूँ न खुले सोच और माहौल का पूरा मज़ा लेते हुए निर्णय लें .... 
फिर सीनियर जी बोले ... भाई ऐसे माहौल में सिर्फ 10 या 5 साल पहले जन्म लेकर क्या हमसे अपराध हो गया ... जो हमें इस मज़े से महरूमियत का शोग लिए जीवन गुजारना पड़ेगा ... जिन्होंने रूढ़िवादी सामाजिक संस्कारों की पहली सीडी पर कदम तक नहीं रखा, उन्हें तो नये - नये तोहफों से नवाज़ा जा रहा है ... और हम लोग जो निष्ठा पूर्वक इस झंझटिया सीडी का हर पायदान, बिना कराहे अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी मानकर चढ़ते रहें ... उसे बिलकुल नज़र अंदाज़ कर दिया जाए ... क्या ये न्यायोचित होगा ? ... क्या हम छोटे मोटे बोनस के हक़दार भी नहीं हैं ?... हमें कम से कम एक आध पोस्ट - मैरिटल अफ़ेअर और एक - दो शारीरिक संबंधों की इज़ाज़त तो दे ही देनी चाहिए ... ताकि हम भी मुक्त मन से नये युग के ताल में ताल मिला सकें ...
जब शादी से पहले वाले लोगों के लिए इस लक्ष्मण रेखा (शादी) की बाध्यता उनकी अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी पर छोड़ दिया गया ... तो क्या उसी रेखा को सफलता से पार कर गए हम लोगों के ज़िम्मेदार होने पर शक है ... 
या फिर हमारा हश्र उस होम लोन के ग्राहक की तरह है, जिसने दो साल पहले लोन लिया, और अब घटा हुआ ब्याजदर का फायदा उसे नहीं मिल सकता ... क्यूंकि वो नया ग्राहक नहीं है .....
जब हम अपनी पूरी निष्ठा और ईमानदारी से परिवार और समाज की हर ज़िम्मेदारी को उठा रहें हैं, तो उसी परिवार और समाज को, हमारे इस तुक्ष इक्छा का सम्मान नहीं करना चाहिए ...
भाई  सवाल जायज़ था .... सो हम में से किसी के बोल नहीं फूटे .... गोष्ठी का समापन बिना उत्तर पर विचार - विमर्श हुए हो गया .... सबके लटके और मुरझाये थूथन को देख कर मैंने हिम्मत जुटाई, और कहा की ब्लॉग की दुनियां में समझदारों की कोई कमी नहीं है ... जिस सवाल को हम नहीं सुलझा सकें क्यूँ न उनके सामने रखा जाए ... कुछ तो संतोष जनक सुझाव, तसल्ली या फिर नसीहत मिल ही जायेगा ...
तो पाठकों आपसे अनुरोध है की इस सवाल का सही जबाब ढूँढने में हमारी मदद करें .... 
ये आपका उपकार होगा चाय - गोष्ठी करने वाले प्रौढ़ मंडलियों पर .....

छड़े और कवारों को तुम, बाँट रहे हो फूल ....
हमने तुम्हरी भैंस लूटी, जो हमें गए तुम भूल ....
बिन ब्याहों को खुली छूट है, लूटैं खूब मज़ा ....
हम ब्याहों ने धरम निभाया, का काटेंगे सज़ा ....  

Monday, April 5, 2010

सावधान : अछूत हो तुम .....अपनी औकात में रहो ...

गुप चुप ... एक नये नीच जाति का जन्म ...

एक ९ साल की बच्ची का ख़त...जिसकी भावनाओं को उसी के अपार्टमेन्ट के RWA वाले अंकलों ने चोट पहुँचाया....
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प्यारे मजबूर Tenant बच्चों और उनके मम्मी पापाओं ...

1 अप्रैल से हमारे सोसाइटी का स्विमिंग पुल खुल गया, लेकिन अफ़सोस की हमलोग उसमे नहीं जा सकते | कारण बताया गया की हमलोग Tennat हैं |
मुश्किल से 50 मीटर के radius में adjusted उस स्प्लैश पूल में उछलने के लिए ये जरूरी है, की हमारा यहाँ एक फ्लैट हो, वो भी अपना | तो आओ सबसे पहले अपने घर में कोहराम मचाएं और मम्मी पापा से पूछें की हमारा यहाँ owend फ्लैट क्यूँ नहीं है | हम बच्चों को इससे क्या मतलब की फ्लैट की कीमत 50 लाख हो | चाहे जैसे भी हो वो हमें जल्द से जल्द घर मुहैया कराएं, रहने वाला नहीं, दिखाने वाला owned फ्लैट | और जब तक ऐसा नहीं होता तब तक " Pets and Tenant not Allowed " का बोर्ड पढो और अपने माँ बाप को कोसो |
और एक लिहाज़ से बात ठीक भी है, Owners ने मकान खरीदें हैं तो मज़ा भी पूरा का पूरा उन्हें ही मिलना चाहिए | चाहे common space के बिजली का खर्चा हम ही क्युं ना दें, जिस common space में ये जिम और पूल बने हैं | क्या पता पूल में इस्तेमाल हो रहे पानी और उसके सफाई का खर्चा भी हम ही दे रहे हों (Maintanance के नाम पर) जिसके लिए ये सारा टंटा हो रहा है | हमें ये जानने तक का हक तक नहीं है की, जो मोटा पैसा हम अपनी सहूलियत के लिए खर्च कर रहें हैं, कहीं उसी में से कुछ माल RWA के आड़ में यहाँ रह रहे कुछ owners के ऐशोआराम के चढ़ावे में तो नहीं जा रहा है | भाई हमें ये जानने का हक है ही नहीं, क्युंकी हम Tenant जो ठहरें | कुछ तो फर्क होना चाहिए मकानदार और किरायेदार में | और इसमें कोई शक नहीं, की ये बहुत बड़ा फर्क है कुछ नवधनाढ्य एवं संकीर्ण मानसिकता वाले मकान मालिकों के लिए | इन्होनें तो हम बच्चों को भी दो वर्गों में बाँट दिया | इन्हें ये तक नहीं लगा की इस फैसले ने हम बच्चों की भावनाओं के दो फाड़ कर दिए | दिल तोड़ दिया RWA वाले अंकलों ने .... खैर छोड़ो हम Tenant बच्चों की भावनाओं की क्या औकात... |
आज मुझे पहली बार ये एहसास हुआ की Highly litrate और Elite दिखाई देने वाले कुछ मकानदार, RWA के आड़ में एक नये "अछूत" जाित को जन्म दे रहें हैं । और इसका नाम अब आप समझ ही गये होंगे "किरायेदार या Tenant" । हमारी मजबूरी देखिए, So called Educated और Modern society में पलते बढ़ते हुए हम बच्चे, देश की राजधानी में रहने के बावजूद भी कुछ नहीं कर सकते हैं । नवधनाढ्य और छिछले मानसिकता की कोख़ से हो रहे इस नाज़ायज ज़न्म को हमें चुपचाप देखना होगा । क्योंकि इससे बचने का दो ही तरीका है, या तो खोखली मानसिकता वाले ये कुछ मकानदार, इंसान और इंसान में फर्क करना छोड़े या फिर तुरन्त में हो 50 लाख एक घर, ताकि एक ही झटके में हम कूद के अछूतों के कौम से बाहर हो जायें । तो .... बन्धुओं पहले की आस इस समय तो है नहीं, और मैं इतनी नासमझ नहीं की Pool में नहाने के चक्कर में अपने घरवालों का जीना हराम कर उन्हें 50 लाख के नीचे डाल दूँ ।
देखो मैं समझदारी की बात कर रही हूँ ना, इसी तरह तुम्हें भी समझदारी से काम लेना होगा । मुझे हैरानी होती है कि 9 साल की उम्र में भी हम बच्चे आपस में भेदभाव नहीं रखते, पर आधी से ज्यादा ज़िन्दगी जी चुके हमारे RWA वाले अंकलों के पल्ले ये छोटी सी बात क्यों नहीं पड़ती । िदखने और बातों से तो काफी समझदार ही मालूम पड़ते हैं ....चलो कोई मज़बूरी होगी उनकी .... हम उनकी सोच पर क्यूं सवाल उठायें... हमें तो अपनी सोच ठीक करनी है ।

तो दोस्तों हमें अपनी भावनाओं पर काबू रखते अपनी औकात समझ लेनी चाहिये ।
हमें अछूत घोषित कर दिया गया है .... इससे पहले की हम किसी हीन भावना से ग्रस्त हों, हम कुछ सच्चाईयों को समझ लें तो दिक्कत कम होगी । आखिर रहना तो हमें इन्हीं सामंतो के गांव में हैं ।

देखो भई मुझे तो कुछ बातें पापा ने मन में उतरवा दिया ... जो तुम्हारी समझ में आए तो समझना.. नहीं तो अपने घुटन के जिम्मेदार तुम खुद होगे । क्योंकी मुझे पता है, कि हम बच्चे अपनी उन्मुक्त भावनाओं को बहुत देर तक दबा नहीं सकते ।

तो दोस्तों हमें अब हर वक्त इस बात का हमें खास ख्याल रखना है, कि Owner बच्चें किसी भी सूरत में हमसे नाराज़ ना हो । अगर हम पार्क में खेल रहें हों हर सूरत में Owner बच्चों के सम्मान और झूठी चापलूसी का ख्याल रखना हमारा धर्म होना चाहिए । हमारी कोशिश हो कि वो हर वक्त झूले पर बैठे और हम उन्हें झुलाऐं । उनकी बदतमीज़ी भरी हरकतों को भी, हमें हंस कर टालना पड़ेगा । क्योंकी हमनें एक ग़लती की और मकानदार RWA वाले अंकलों को नहीं पची तो, तो हमें Park से Parking में समेट दिया जायेगा । हो सकता है कि एक तालिबानी फरमान जारी हो ... जिसमें ये बताया जाये कि Tenants के बच्चे किन-किन झूलों का इस्तेमाल नहीं कर सकते ।
लेकिन दोस्तों इसमें बुरा मानने वाली बात नहीं है । अव्वल हम बुरा मान ही नहीं सकते ... Tenant जो ठहरें ...
कहने का मतलब है कि किसी भी सूरत में Owners हम से नाराज़ ना हों, उनकी तानाशाही बरकरार रहे, ये हमारी नैतिक ज़िम्मेदारी होनी चाहिए । नहीं तो परिणाम हमारे मां बाप को भुगतने होंगें । हमारा बोरिया बिस्तर इस Society से उठ सकता है और हमें दूसरा घर ढूढ़ना पड़े । और इसकी क्या गारांटी की वहां ऐसे ही बिमार मानसिकता के लोग न मिलें । जब हर नगर में अंधेर है तो क्यूं ना यहीं चौपट राजा की ही बादशाहत स्वीकार कर ली जाये ।
और Tenant मम्मी - पापाओं... आप तो बिल्कुल Tension मत लेना ... मंहगाई और मंदी के मार से उथल - पुथल आपके जीवन में, हमारे लिए Time हो ... ऐसा सोचना भी हमारे लिए पाप है ... निष्पक्ष सामाजिकता और बच्चों के भावनाओं के चक्कर में फंस कर... आप लपेटे में आओ... ये जायज़ नहीं है । आप हमारी पीड़ा को देखकर ... सीधे RWA से टक्कर लें या सवाल पूछो ... ऐसी जूर्रत तो बिल्कुल मत करना ... वरना हमारे चक्कर में आपका बैंड बज जायेगा ... दुनियां में इतने गलत काम हो रहें हैं तब भी तो आप चुप हो .... फिर अपने बच्चों के दुख को झेलना क्या मुश्किल है ... उल्टा अगर हम कभी Control खोयें तो आप हमें साम, दाम, दंड और भेद से समझा बुझा कर लाईन पर लाऐं ।
तो बन्धुओं फिलहाल "Tenancy" अब हमारी किस्मत है, जब तक हमारा अपना मकान नहीं हो जाता...तब तक RWA वाले चाचाओं को Thanks बोलो कि उन्होनें वक्त रहते हमारी आँखे खोल दी... बच्चों - बच्चों में फर्क करना हमें सिखाया । रफ्तार पकड़ती जिन्दगी में वैसे ही बड़ो का मेल-मिलाप तो हाय हैलो तक ही रह गया, हम बच्चों ने अब तक इस रिवायत को जिन्दा रखा हुआ है । लेकिन हमारे सम्मानित RWA के पदाधिकारियों ने इसका भी टेंटुआं दबाना शुरू कर दिया...धीरे-धीरे एक दिन हम बच्चों में भी फूट पड़ जायेगा...और दुनियां भर में मशहूर "भारतीय पड़ोसी परम्परा" का दम टूट जायेगा ।
अगर बुरा ना माने तो RWA वाले अंकलों से कुछ सवाल पूछना चाहती हूँ .....
जब आपने हमें नीच और अछूत घोषित कर ही दिया, तो अब आपके बच्चे हमारे साथ खेलें...ये बर्दाश्त कर लेंगे आप...घिन्न नहीं आयेगी आपको । भगवान न करें कल आपके साथ कोई दुर्घटना हो जाये, और सिवाय हम अछूत Tenant के अलावा कोई और मददगार ना हो उस मौके पर...तब आप किस मुँह से मदद ले पाओगे ।
अंकल आप लोगों ने वाकई में ये Association यहां रहने वाले Resident के Welfare के लिए बनाया है, या फिर सिर्फ Owners के लिए । एक उपकार और करो हम दो टके के लोगों के लिए, उपर लिखे सभी सवालों को Clear कर दो....ताकि हमारा सामाजिक सौहार्द और RWA से भ्रम टूटे । आप भी मुक्त कंठ से इसे Owner Welfare Association के नाम से पुकारो और हम भी कुछ सोंचे । या तो घुटन भरे इस माहौल में जीना सीख लेंगे ... या ...अगर हमारे मम्मी पापाओं का ज़मीर जाग गया तो TWA(Tenant Welfare Association) टाईप के Option पर विचार करेंगे । वैसे चाचाओं मैनें कई बार पापा को बात करते सुना है कि, अब तो हरिजनों को भी हेय दृष्टि से देखना सुरक्षित नहीं है ... इससे एक समूह की भावनाऐं आहत होती है ... जो भारतीय दण्ड संहिता के दायरे में कानूनी अपराध है । यकीन नहीं होता...तो RWA का एक फतवा बाहर गेट पर टांगो " NO ENTRY FOR SC/ST " देखो दो दिन में कैसे बैंड बज जायेगा आप सबों का । बुरा मत मानना, मेरे कहने का सिर्फ ये मतलब है कि खुद को उँचा दिखाने के लिए Reason तो कम से कम Full Proof ढूंढो । अन्यथा क्या फायदा, किसी भी दिन सामाजिक सौहार्द और नैतिकता, कानून की ऊंगली पकड़कर, तुमसे तुम्हारी ही बलि मांग लेगी ।
तो आपके लिए इतना ही काफी है कि " GET WELL SOON ".

और मेरे Owned घर विहीन बन्धुओं, अब बेईज्जती झेलने की आदत डाल लो .....
मोटा किराया भरने वालों नीच अतिथियों... "अतिथि देव: भव:" इसे भूलकर यहां दिन काटो .....
भगवान जल्दी से जल्दी तुम्हें इस नीच जाति से निकाला दे ......

तुम्हारी Tenant साथी .....

मैथिली सिंह (नेहा)
507, सिएना, महागुन मोजैक - 1,
सेक्टर - 4 , वैशाली, गाज़ियाबाद,
उत्तर प्रदेश
मोबाईल - 1234567890

नोट : इसे पढ़ने के बाद गलती से किसी भी मम्मी-पापा की खुद्दारी उबाल मारे, और गरियाने का मन करे, तो अपनी भड़ास ऊपर लिखे नंबर पर ही निकालना । कहीं और फालतू में पंगा मत ले लेना आप लोग । क्योंकी पत्र में भावनाऐं सिर्फ मेरी है....शब्द मेरे पापा ने डालें हैं ।

खुर्पेंचुं की बेटी को, डस गया tenant दंश ....
कल तक जो सब अंकल थे , आज दिखत हैं कंस ....
जीना तो सीखै पड़ी, भूल समाज औ संस ...
बिन प्रहरी खलिहान है, जो कौवा चुगे या हंस .....

भांड में जाये दुनियां...हम बजायें हरमुनिया..

भाई चलो एक और टंटा कटा..सुप्रीम कोर्ट ने ये कह दिया कि लिव इन रिलेशनशिप या प्रिमैरिटल सेक्स को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता..और एक हद तक बात ठीक भी है..वो दो व्यक्ति जिनकी उम्र 18 साल से ज्यादा हो, मतलब बालिग हों, अगर आपसी रजामंदी से साथ में रहें या फिर शारीरिक संबंध बनाएं तो इसमें हर्ज ही क्या है..सेक्स तो शरीर की बुनियादी जरूरत है..उसके लिए शादी जैसे रूढ़िवादी बंधन में बंधने का इंतजार क्यों किया जाए..
प्यास लगी है तो पानी पियो..
भूख लगी है तो खाना खाओ...
और सेम टू सेम ...
अगर ठरक मची हो तो सेक्स करो..
सीधी बात नो बकवास..
पहले तो सभ्यता और समाज का डर हमें मौन धमकियां देता रहता था लेकिन कोर्ट की टिप्पणी ने उसके मुंह पर लीकोप्लास्ट चिपका दिया.. अब कौन रोकेगा और किस हैसियत से रोकेगा..

तो भाईयों पथ अवरोधमुक्त है बढ़े चलो, बढ़े चलो.. लेकिन मैं तुमसे कुछ टिप्स शेयर करना चाहता हूं ताकि इस राह पर बेफिक्र होकर चल सको.. भाई समझे नहीं.. देखो ये ऐसा रास्ता है कि इसके पग-पग पर पूरा मजा लेना जरूरी है.. जो चलते वक्त एक क्षण के लिए भी कोई फालतू की बात दिमाग में आ गई तो मजा किरकिरा हो जाएगा..लो मैं भी निरा बेवकूफ ठहरा.. लजा लजाकर खुलेपन को समझा रहा हूं..तो लो खुल्ले में सुनो..
भाई, जिस लिव इन या प्रीमैरिटल सेक्स की बात अपन कर रहे हैं वहां तक पहुंचना इतना आसान नहीं है.. बड़ी मेहनत करनी पड़ती है.. पहले एक साथी ढूंढो..फिर उसे धीरे धीरे अपनी चाहत बताओ, उसे मानसिक रूप से तैयार करो.. पता नहीं कितने महीने या साल की मेहनत के बाद वो दिन आएगा जब तुम साथ साथ रहोगे या करोगे.. अब ऐसे वक्त में अगर तुम्हारे पिछले जीवन में पड़ा कोई भी नैतिकता का पाठ याद रह गया, जो तुम्हें सो कॉल्ड दो कौड़ी की भारतीय सभ्यता ने सिखाया था, तो समझ लो कि तुम्हारे सालों की मेहनत पर रायता फैल जाएगा..कुछ नहीं कर पाओगे जब तक होश संभलेगा तुम्हारी ब्रॉड माइंड की दुकान लुट चुकी होगी.. हाथ में होगा दद््दू के जमाने का दिया काला, एकल निर्मित, ग्रीस और तेल में लिपटा संकीर्णता का ताला.. "सन 1927.. भारतीय सभ्यता और संस्कृति फैक्टरी, जहीनगंज, रूढ़ाबाद में निर्मित.. पुरानी पीढ़ी द्वारा आने वाली पीढ़ी को सप्रेम भेंट".. जैसे ही नजर ताले के पिछवाड़े पर गुदी इन अक्षरों से टकराएगी.. जी में आएगा कि तुरंत किलो भर के इस ताले से आधे फुट में फैले लिलार को फोड़ दिया जाए.. तो भाईयों जो बचना चाहो ऐसी नौबत से तो आओ देते हैं मुख्य तीन बातों का ध्यान..

1. बुजुर्ग बहिष्कार... चूंकि मानव मन प्रबल इच्छा करने वाला होता है.. अत: तुम्हें 14-15 की आयु से ही इसकी तैयारी में लग जाना होगा.. क्योंकि तुम कहां मानोगे अट्ठाहरवें वर्षगांठ की संध्या से ही तुम जुगाड़ में लग जाओगे.. तो भाई 14-15 की आयु से ही तुम्हारा एक सूत्री काम बुजुर्ग बहिष्कार होना चाहिए.. इसके लिए तुम 14-15 की आयु में आते ही पूरे विवेक और दृढ़ प्रतिज्ञ होकर घर के बुजुर्गों से लगातार तनाव पूर्ण स्थितियां बनाना शुरू कर दो.. उनकी हर संस्कारों के गुणगान की आरती में अपने आधुनिक और खुले सोच का घंटा जोर शोर से घनघनाओ.. ध्यान रहे कि घंटे का स्वर इतना ऊंचा होना चाहिए कि आरती का कोई भी लफ्ज साफ सुनाई न दे.. अन्यथा ताकतवर रूढ़िवादी संस्कारों का सम्मोहन मंत्र तुम्हारे दिलोदिमाग पर हावी होने लगेगा.. कहीं न कहीं इसी माहौल में पले-बढ़े तुम्हारे शरीर का भारतीय खून तुम्हारी उन्मुक्त भावनाओं से दगा कर जाएगा.. मुझे उम्मीद है कि मेरे व्याकुल बंधुओं मेरे टिप्स तुम्हें राहत पहुंचा रहे होंगे..आओ आगे बढ़ें.. अब तक तुम 18 के हो चुके होगे.. इसलिए 18वें साल के पहले दिन से ही तुम एकाग्रचित्त और वकोध्यान से साथी की खोज में जुट जाओ.. देखो भाई चुनाव बिल्कुल निजी मामला है.. तुम्हारी मर्जी पर है अत: मैं इस पर सलाह देना ठीक नहीं समझता..लेकिन ध्यान रहे अगर अपोजिट पार्टी सॉलिड (मतलब बुजुर्ग संस्कारिता रहित) नहीं हुई तो बड़ा टाइम वेस्ट हो जाएगा उसे लाइन पर लाने में.. और अब इतना टाइम कहां है तुम्हारे पास.. 25 तक होते तो शादी, तलाक सब निपट चुका होता है..वैसे एक आयडिया अभी अभी कौंधा है.. भाई 18 से पहले रहना या करना ही तो रिस्की है.. सेलेक्शन में कोई दिक्कत थोड़े ही है.. तो क्यों न 14-15 से ही सेलेक्शन का प्रोग्राम शुरू कर दिया जाए..साथ ही साथ दोनो उन्मुक्त विज्ञान और आधुनिक रिसर्च से न्यूक बॉम्ब बांधते रहो और 18 के होते ही अपने परिवार पर दे मारो.. एक ही झटके में दोनों पोखरन तबाह.. मतलब ये एक फोड़ू तरीका हो सकता है.. और जो ऐसा न हो पाए तो फिर हमें बुजुर्ग बहिष्कार के टैंक में घुसकर ही लड़ाई लड़नी पड़ेगी.. क्योंकि जैसे ही घर के बुजुर्गों को तुम्हारी मंशा का पता चलेगा वो अपनी पूरी ताकत से रूढ़िवादी संस्कारों के जेट पर सवार होकर सामाजिकता और पारिवारिकता का मिसाइल अंधाधुंध दागने शुरू कर देंगे.. और भइया यही वो समय है जब तुम्हारी पिछले सालों की मेहनत तुम्हें इन वारों से कवर देगी.. और जो कोई भी चूक हुई तो तुम्हारा लंगड़ा होना तय है.. फिर देखते रहना आधुनिकता और खुलेपन के स्टेडियम के फट्टे पर बैठकर लिव इन और प्री मैरिटल सेक्स का मनोरंजक फुटबॉल मैच.. क्योंकि अब खेल पाना तुम्हारी किस्मत कहां..

2. निसंकोच प्रदर्शन - वैसे तो ये दोनों पार्टी के लिए काम का है.. लेकिन सो कॉल्ड पुरातन और संकीर्ण भारतीय सामाजिक मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए फीमेल वर्ग इन टिप्स का अचूक फायदा उठा सकती हैं.. इस प्रकरण में सबसे बड़ी विलेन है भारतीय मां.. जो बचपन से ही बेटियों में लोकलाज, सामाजिक व्यावहार, पारिवारिक सम्मान और शारीरिक इज्जत का पाठ पढ़ाती रहती हैं..उनकी एकमात्र खुदगर्जी होती है जवान होते ही पूरी दुनिया उनकी बेटी को सभ्य और सुशील कहे.. उन्हें पता ही नहीं कि आज के खुलेपन में उनके हिसाब की सभ्य और सुशील लड़कियों को बहनजी टाइप कहकर मजाक उड़ाया जाता है..और जब आज मौका मिला है कि अपने मन की कर सकते हैं दादी, नानी, दीदी, चाची, बुआ, मौसी या फिर खुद वो गाहे बगाहे जिस एक इच्छा को सामाजिक बंधनों के प्रति जिम्मेदार होने के कारण दबाती रही हैं उसे पूरा किया जा सकता है.. तो क्या ये बुद्धिमानी है कि सभ्यता और शालीनता के चक्कर में पड़कर जिंदगी भर के लिए एक टीस सीने में दबाकर रखी जाये.. उन्हें ये क्यों नहीं समझ में आता है कि चोर चोर मौसेरे भाई.,. जब सभी एकजुट होकर खुलेपन का बिगुल फूंकेंगे तो सभ्यता और शालीनता की परिभाषा बदलने में टाइम कितना लगेगा..सच्चाई तो ये है कि परिभाषा काफी कुछ बदल भी चुकी है, जरूरत है संस्कार और लोकलाज के चश्मे को उतारकर इसे पढ़ने की.. तो बहनों न..न.. माफ करना (जूतियां बज जाएंगी, मैं भी क्या नि:संकोची होने का टिप्स संकोची होकर दे रहा हूं).. हां तो सखियों.. चलो बिल्कुल साफ तरीके से बताता हूं... जो आप लिव इन रह रही हो और प्री मैरिटल सेक्स की इच्छा से ग्रसित हो तो किसी भी सूरत में अपने ऊपर संकोच (मां के पाठ) को हावी न होने दो.. ये आपकी राह में इतने कांटे बिछा देगा कि आप आत्मग्लानि रूपी कैंसर की मरीज हो जाओगी.. जीवन नर्क हो जाएगा आपका.. और ध्यान रहे, वर्जिनिटी का ख्याल तो सपने में भी न आए.. वो आपकी राह का रोड़ा है ही नहीं आने वाले समय में.. अब आप सोच रही होंगी कि जिन चीजों का जिंदगी में कोई फिजीकल एक्सिस्टेंस नहीं है उस पर तो इसने भड़ाभर तर्क दिए.. और वर्जिनिटी जो फिजिकल सबूत हो सकती है, उस पर लपेट कर निकल रहा है..तो आओ क्लियर कर देता हूं.. वैसे इसे फेस करने के बहुत से संतुष्टिदायक और वैज्ञानिक तौर पर सिद्ध बहाने हैं.. पर फिर भी अगर आप अपनी जीवन डगर के पहले पग की बुनियाद झूठ पर नहीं रखना चाहतीं.. सच्चाई की प्रतिमूर्ति बनना चाहती हैं तो भी कोई समस्या नहीं है.. क्योंकि आप ये क्यों भूल जाती हैं हम सभी काजल की कोठरी में होंगे.. फिर सामने वाला किस मुंह से कोई सवाल कर पाएगा.. कई जगह मुंह मारने के बाद भी उसकी शादी हो गई ये कम है कि फालतू के सवालों में फंसकर और अपनी ही भद्द करवाए.. वो दो चार साल आगे सामाजिक सर्टिफिकेट के साथ जीने का मजा लेगा या फिर अपने चरित्रहीन हाथ की उंगली सामनेवाली के चरित्र पर उठाएगा.. मुझे तो लगता है कि चरित्रवान होने की परिभाषा भी बदल जाएगी.. जो व्यक्ति चार-पांच लिव इन और 100-200 प्री मैरिटल सेक्स संबंधों से पूर्ण संतुष्ट होने के बाद दाम्पत्य सूत्र में बंधे, और तलाक होने तक संयम बरतते हुए एकल सहवासी हो, वो चरित्रवान होगा..
अत: हे बांधवों, अगर रूढ़िवादी सामाजिक मान्यताओं लोकलाज और हमारी सो कॉल्ड संपन्न संस्कृति की तुलना में, एक बुनियादी शारीरिक जरूरत और सिर्फ अपने मन को संतुष्ट करने वाले सहगामी परीक्षण की थोड़ी सी भी कद्र हो तो ऐसा करते समय उन्मुक्त और निसंकोच प्रदर्शन तुम्हें एक दूसरे के प्रति ईमानदार बनाएगा.. अन्यथा खाया पीया कुछ नहीं गिलास तोड़ा 12 आना..

3. गले की घंटी- ये बड़ा ही व्यावहारिक और दिमाग के सारे दरवाजे खोलकर समझने वाला टिप है.. देखो भाई ऊपर लिखित दोनों टिप्स बेशक लिव इन और प्रीमैरिटल सेक्स के लिए अचूक फॉर्मूले हैं.. लेकिन इसमें एक खतरा भी है जिसका संबंध न तो जीर्ण शीर्ण पड़ती परम्परा या दम तोड़ती संस्कृति और सामाजिक मान्यताओं से है.. और न ही हमारी शारीरिक संतुष्टि से.. इसका सीधा संबंध अपनी खुद की अंतरात्मा से है.. एक बार को हम पूरी दुनिया से दगा कर सकते हैं लेकिन अपने से दगा कर हमें जीवन भर बेचैन रहना होगा.. फिर दुनिया का कोई भी शारीरिक या भौतिक सुख हमें इस धर्मसंकट से उबार नहीं सकता.. अत: हे काया पिपासुओं जो इस धर्मसंकट में न पड़ना चाहो ध्यान रहे.. लिव इन में शारीरिक संबंध बनाते हुए अपने परीक्षण की समाप्ति से पूर्व.. एक क्षण के लिए भी साथी में विश्वास न करो.. अपनी तरफ से 200 फीसदी एहतियात रखो ताकि भविष्य में कोई अप्रिय या विचलित करने वाली घटना की घंटी न टनटनाए.. क्योंकि एक बार ये घंटी बजी और समझ लो तुम्हारे जीवन का घंटा बज जाएगा.. मैं भी उस वक्त तुम्हें मजबूर और लाचार कोने में से घंटी पहनने की ही सलाह दे रहा होऊंगा.. तुम्हें प्रेरणा स्रोत मानने वाले तुम्हारे जूनियर्स चुपचाप भीगी आंखों से तुम्हारे बलिओत्सव में शरीक होंगे.. और तुम्हें संस्कृति एवं पौराणिक मान्यताओं के मकड़जाल के खिलाफ छिड़े जिहाद का नायक मानने वाले तुम्हारे सीनियर्स, चेहरे पर बनावटी हंसी लिए तुम्हें फंासी (बेमन की शादी) के तख्ते पर धकेल रहे होंगे और कुछ महीनों बाद बर्थ सर्टिफिकेट पर अपना नाम बाप की जगह लिखा देखते हुए ड्रामे का पटाक्षेप होगा.. इतिहास तुम्हें सिर्फ शहीदों में दर्ज कर अपना पीछा छुड़ाएगा.. तुम्हारे गले वो घंटी होगी जो जिंदगी भर टन टन कर तुम्हारे असफल परीक्षण की याद दिलाएगी..इन सबके अलावा कलेजाफाड़ होगा साथी का आरोप कि तुम्हारे चक्कर में वो भी अधूरी रह गई या रह गया.. कैसी विकट परिस्थिति होगी.. हाय..हाय.. मुझे तो सोचकर भी डर लगता है.. अब तुम लोगों में से कई लोग सोच रहे होगे कि कैसा पुरातन मानव है मामूली बात पर ज्ञान पेले पड़ा है.. इसे इतना भी नहीं मालूम कि मात्र 5000 रुपए का खर्च और सब मुश्किलों से निजात..तो बांधवों ऊपर अंतरात्मा वाली लाइन को याद करो.. माथा ठनक गया होगा.. नहीं ठनका तो सुनो.. हम लोग पढ़े लिखे लोग हैं और यही वो कारण है कि हम बेड़ियों को तोड़ खुले आसमान की सैर करना चाहते हैं.. फिर क्या तुम्हें लगता है कि जाहीलपन की उपज भ्रूण हत्या जैसा जघन्य अपराध हम जैसे स्वस्थ और शिक्षित मानसिकता के लोग आराम से पचा लेंगे.. जब जब आईने के सामने खड़े होंगे खुद पर थूकने का मन नहीं करेगा.. फिर कभी किसी भ्रूण हत्या के खिलाफ परिचर्चा में आवाज फूटेगी हमारी.. घृणा नहीं होगी अपने जीने से.. चलो मान लेते हैं कि हम समझदार मर्द लोग हैं.. हर परिभाषा अपने हिसाब से तय कर लेंगे.. कोई न कोई जुगाड़ निकाल ही लेंगे.. लेकिन भाई उन बिन ब्याही माँओं का क्या करोगे जिनका मातृत्व प्रेम कभी जाहिल और अक्लमंद में फर्क नहीं करता.. घंटी बजते ही फूट पड़ेगा.. और तुम्हारी सारी मतलबी परिभाषाओं के चीथड़े फाड़ देगा.. माना कि कलयुग खत्म होकर ये महाभ्रष्ट युग है, खुलेपन और स्वतंत्रता की आड़ में हम बड़े आराम से हर रिश्ते को बेइज्जत कर देते हैं.. लेकिन भाई माँ का अपनी कोख से प्रेम खत्म हो, अभी उस युग को आने में देर है.. मुझे नहीं लगता कि ऐसा कोई युग हो सकता है.. यकीन नहीं है तो जानवरों को देख लो.. हम जिस खुले युग की खोज में हैं पता नहीं कब से वो उसमें जी रहें हैं.. दरअसल, वो उससे भी आगे हैं.. कोई शादी वादी नहीं..पूरा जीवन प्रीमैरिटल सेक्स और लिव इन पर ही टिका है.. लेकिन वहां भी मातृत्व प्रेम का उपहास शायद कुछ ही प्रजातियों में ही देखा जाता है.. ओह मैं सैंटी हो गया... (ये भारतीय समाज का लालन-पालन मेरा बेड़ा गर्क करेगा.. नए समाज में लोग मुझे शक की निगाह से देखेंगे).. अरे डोंट टेक इट अदरवाइज.. मैं तो मामले की गंभीरता समझा रहा था.. हां हम बात कर रहे हैं कुंवारी माँओं की.. अरे भाई क्या कहना और सलाम नमस्ते जैसी फिल्मों ने इनके हौसले को और बुलंद कर दिया है.. पहले सामाजिक स्वीकृति का डर जो अमूमन इनके मातृत्व प्रेम पर भारी पड़ता था.. अब इन फिल्मों ने उसका भी असर ढीला कर दिया.. सो स्वांत:सुखाय चिंतितों.. एक बात समझ लो जो अगर चाहते हो जीवन में झंझटों से मुक्त होकर लिव इन और प्रीमैरिटल सेक्स का आनंद, तो इन टिप्स को अक्षरश: रट लो.. और यार इसमें दिक्कत क्या है सरकार करोड़ों बहा रही है ये समझाने के लिए.. एक पंथ दो काज.. न कोई बीमारी का खतरा, न गले की घंटी..

देखो भाई ये तो थे तीन मुख्य बातें, लेकिन जैसा मैं पहले जिक्र कर चूका हूँ की हम पढ़े लिखे समझदार लोग हैं..सो हमारी ज़मीर भटाक से जाग जाती है..अतः हे आपमरूदों..दृढ निश्चयी हो इस मार्ग पर आगे बढ़ो..आओ प्रण करें की हमारी सभ्यता और संस्कृति का बड़े से बड़ा नुकसान भी हमें हमारे मार्ग से न डिगाए..हम ओबामा को हर उस समय शक की निगाह से देखे जब जब वो अमेरिकी बच्चों को भारतीय संस्कृति की दुहाई दे ... उसकी हर ऐसी कोशिश को अंतर राष्ट्रीय साजिश समझे, की वो चाहता ही नहीं है की हम भी विकसित हों..खुद तो न जाने कितने सालों से खुलेपन और हर प्रकार के शारीरिक उपभोग का मज़ा ले लिया ...जब हमारी बारी आई तो हमें दिग्भ्रमित कर रहें हैं ये कहकर की हम ऐसी ज़िन्दगी से त्रस्त हैं..और भारतीय संस्कृति व सामाजिक परिवेश हमें आकर्षित कर रहें है .... ध्यान रहे ...हमें हर हाल में ऐसे चिकनी चुपड़ी बातों से परहेज रखना है ... अव्वल तो हमें ये अपने दिमाग में ठोंक लेना चाहिए के ये लोग कतई नहीं चाहते की भारत भी कभी, खुले बिन लगाम वाले दिमाग से , उन्मुक्त कामुक भावनाओं के साथ, तथाकथित संकीर्णता का प्रतीक हमारे भारतीय सामाजिक रहन सहन की छाती पर सकीरा डांस करते हुए इनका मुकाबला करें...

तो स्वार्थंधों अब निर्णय तुम्हें करना है ....उम्मीद है मेरे टिप्स तुम्हारे मार्ग को और प्रशस्त करेंगे ....

खुर्पेंचूं का नुस्खा है, अमल तुम्ही पे भाई ..
एक तरफ वही पपीता , दूजी सड़ी मिठाई ...
बिन सोचे तुम स्वाद लो , और समझो इसे मलाई...
सोच के तुम पछताओगे, की मैंने क्यूँ न खाई ....