Blogvani.com आपमरूदा....: 2011

Thursday, April 14, 2011

अब मुन्ना कि बारी है अन्ना !!!



भाई कमाल कर दिया अन्ना ने ... पूरे देश के लोगों को झनझना दिया ... अनशन कि रिपोर्ट टीवी पर देखते हुए ऐसा लग रहा था मानो हम आजादी से पहले के समय में लौट गए हों ... जंतर मंतर कि बात छोडिये गली मोहल्ले, बस स्टैंड, चाय कि दूकान और येहाँ तक कि दफ्तर में भी पूरा माहौल अन्नामय हो गया था .... हर कोई बस येही पूछता फिर रहा था कि चल रहें है जंतर मंतर ... मेरे 35 साल के उम्र में पहली बार मुझे लगा कि वाकई अब हिन्दुस्तान के दिन बदलने वाले हैं ... सबसे ज्यादा ख़ुशी तब हुयी जब मेरे एक रिपोर्टर मित्र ने बताया कि पूरे सैलाब में सबसे ज्यादा और जोर शोर से मुन्नाओं ने शिरकत की ... मुन्नाओं से मेरा मतलब नौजवानों से है ... मुझे सीधे यकीन नहीं हुआ ... मैंने अगले दिन खुद को विश्वास दिलाने के लिए अखबार खंघाल दिए ... ज्यादा से ज्यादा अन्ना परिचर्चाओं को टीवी पर सुना ... भाई बात सोलह आने सच निकली ... मुन्नाओं के जोश ने अन्ना के मुहिम को अच्छा खासा बल दिया ...  ना सिर्फ अभी , बल्कि अन्ना को वादा किया कि जब कभी भी आगे जरूरत पड़ेगी मुन्नाओं कि कमी नहीं होगी ... 

लेकिन रुको अन्ना के मुन्नाओं !!!!

ठिठको !!!! ...         

क्या तुम्हें होश है कि तुम क्या करने जा रहे हो !!!

मुन्नाओं ... तुम एक 73 साल के इमानदार, निःस्वार्थ और कमज़ोर बुजुर्ग को झूठी आश दिलाकर झाड पर चढ़ा रहे हो ... जिसका नतीजा तुम्हें भी बेहतर पता है ... उम्र के इस पड़ाव में झाड पर चढ़ने के क्या हश्र हो सकते हैं ...
तुम सोच रहे होगे कि आज खुर्पेंचुं पक्का भांग खाके लिखने बैठा है ... " अरे अन्ना का ये हश्र तो तब होगा ना जब हम उसके साथ नहीं होंगे " .... 
तो मुन्नाओं आओ तुम्हें आईना दिखा दूं ... फिर फैसला करेंगे कि अन्ना का क्या होगा ... :)
तुम्हें ज़रा भी होश है कि जो झंडा उठाकर तुम अन्ना के पीछे चल पड़े हो वो किसके खिलाफ है ? .... गांधी कि याद दिलाने वाले अन्ना ने ये लड़ाई दुबारा से अंग्रेजो के खिलाफ नहीं छेड़ी है बंधुओं ... और ना ही सत्तासीन सरकार के खिलाफ ... ये लड़ाई है हमारे खुद के खिलाफ ... क्यूंकि देश को भ्रष्टाचार के चरम पर पहुंचाने में सरकार में शामिल हमारे ही पापाओ और चाचाओं का हाथ है ... तुम भूल रहे हो कि जिस भ्रष्टाचार के खिलाफ आज तुम्हारा खून खौला है ... उसी खून का एक एक बूँद हमारे पापाओं और चाचाओं के अवैध कमाई का कर्ज़दार है ... ऐसे में तुम्हारा ये विद्रोह कहाँ तक ठठा रहेगा ... कल जब फिर से अन्ना जंतर मंतर पर तुम्हें बुलायेंगे और निकलने से पहले अगर पापा ने उस क़र्ज़ कि याद दिला दी तो क्या जबाब दोगे ? ... या फिर अभी तक वातानुकूलित कमरे और गाड़ियों में रचे बसे अपने शरीर को कब तक अन्ना के चक्कर में जंतर मंतर और इंडिया गेट कि धुप में जला पाओगे ? 
रुको !!! कहीं तुम इस ग़लतफहमी में तो नहीं कि फ़िल्मी सीन कि तरह एक दो बार माहौल बना देना है और देश भ्रष्टाचार से मुक्त हो जाएगा ? ... तो मुन्नाओं तुम्हारी ग़लतफहमी दूर कर दूं ... आजादी कि लड़ाई में तो फिर भी एक दिन आया था 14 अगस्त 1947 कि मध्यरात्री ... जब नेहरु जी ने tryst of destiny पढ़ कर देश कि जनता को ये बताया कि अब हम आज़ाद हैं .... लेकिन  अन्ना जिस लड़ाई को लड़ने जा रहें हैं उसमें ऐसा दिन कभी नहीं आएगा .... जो भ्रष्टाचार हमारे नसों में घुस चुका है वो इतनी आसानी से हमारा पीछा नहीं छोड़ेगा  .... अगर हम सब मिलकर आज ठान भी लें, तो भी जब तक नई पीढ़ी का साफ़ खून सत्ता ना संभाल ले हमें अपनी निगाहें तिरछी ही रखनी होगी ... क्यूंकि अवैध कमाई भी कहीं ना कहीं एक लत कि तरह है ... जो शुरू में आदमी शौक में करता है, बाद में मजबूरी बन जाती है ... और जिसे एक बार ये लत लग गयी, उसके लत को कम करने कि कोशिश तो कि जा सकती है लेकिन पूरी तरह ख़त्म तो ये व्यक्ति के साथ ही हो पाएगी .... 

सो मुन्नाओं अगर पूरी पीढी कि लड़ाई का ज़ज्बा हो तो आगे बढ़ना .... और हाँ तुम आने वाली पीढी के खून में अगर कोई संक्रमण नहीं चाहते आज के भ्रष्टाचार का, तो आज से ही तुम्हें भी अपने पापाओं और चाचाओं  से सवाल पूछना शुरू करना होगा .... घर में भौतिकता के एक एक जुड़ाव का हिसाब लेना होगा .... परिवार के हर गृहप्रवेश और गाडी कि मिठाई खाने से पहले ये पूछने का माद्दा पैदा करना होगा कि ये आया कहाँ से .... अगर तुम ऐसा नहीं कर पाए तो फिर तुम्हारी भूल है कि तुम या तुम्हारी आने वाली पीढी कभी भ्रष्टाचार मुक्त समाज में सांस ले पायेंगे .... 

क्या तुम ऐसा कर पाओगे ?...
नहीं ना !!! .... खुद से सवाल पूछना इतना आसान नहीं है मुन्नाओं !!! ये नामुमकिन है आधुनिकता और भौतिकवाद के दौड़ में :(
तभी मैंने तुम्हें कहा कि बेचारे अन्ना को झाड पर मत चढाओ .... अन्ना के पास ना परिवार है और ना ही शौक .... उसने अपना जीवन दान दे दिया है देश को .... वो जितने भी दिन जियें अगर इस मुगालते में जियें कि देश के हालात बेहतर होंगे तो इसमें क्या बुराई है .... उसने अभी तक जितना दिया है देश को उसके बदले में ही उसे ये दे दो .... 
उसे झूठी उम्मीद मत दो .... अगर वाकई अन्ना को देना चाहते हो तो बस आज से अपने घर में सवाल पूछना शुरू कर दो .... अन्ना कि आधी जीत यहीं हो जायेगी .... 

तो जो ऊपर लिखित से सहमत हो वो सब मिलकर अन्ना को बस एक लाइन में कहें .....
" अब मुन्ना कि बारी है अन्ना "

और घर में भी एक ही लाइन में सवाल पूछें ...
" सब कंट्रोल में हैं ना ...? "


आओ आज से ही शुरू करे अन्नागिरी ....

खुर्पेंचूं ने रिस्क लैके, नुश्खा दिया बताये   
सांप पीटन के फेर में, कहीं लाठी टूट ना जाए 
आँख दबाईके धीरे से पूच्छो .... " सब कंट्रोल में हैं ना भाए "