अरे मैं भी आतुरता में सवाल तो बताना भूल ही गया ... सवाल था ....
जब लिव-इन और प्री - मैरिटल सेक्स को अब समाज में जगह मिलने जा ही रहा है ... तो क्यूँ न पोस्ट - मैरिटल अफ़ेअर या सेक्स को भी जगह देने के बारे में सोचना चाहिए ... खुलेआम ... बिना किसी सामाजिक और नैतिक दबाब के ....
चौंक गए न आप .... अगर आप शादी शुदा है तो गुदगुदी आपको भी हो रही होगी .... कोई नहीं ...कोई नहीं ...आप गुदगुदी के मज़े लेते रहें ... मैं आगे बढ़ता हूँ...
हमारे सीनियर जी ने, न सिर्फ सवाल खड़ा किया, वरन तर्क भी ज़ोरदार दिए ... उनका तर्क था ... जिस कार्य को करने के लिए शादी जैसी लक्ष्मण रेखा खींची गयी थी .... उस कार्य को अगर कोई शादी से पहले करे, तो आने वाले भविष्य में किसी को शायद ही एतराज़ हो ... न सिर्फ करे बल्कि, कईयों के साथ करके संतुष्ट होने तक परिक्षण करे... तब भी कोई दिक्कत नहीं है .... आखिर पुरे जीवन का मामला है, ऐसे कैसे डिसीजन ले लें ... भाई हम क्यूँ न खुले सोच और माहौल का पूरा मज़ा लेते हुए निर्णय लें ....
फिर सीनियर जी बोले ... भाई ऐसे माहौल में सिर्फ 10 या 5 साल पहले जन्म लेकर क्या हमसे अपराध हो गया ... जो हमें इस मज़े से महरूमियत का शोग लिए जीवन गुजारना पड़ेगा ... जिन्होंने रूढ़िवादी सामाजिक संस्कारों की पहली सीडी पर कदम तक नहीं रखा, उन्हें तो नये - नये तोहफों से नवाज़ा जा रहा है ... और हम लोग जो निष्ठा पूर्वक इस झंझटिया सीडी का हर पायदान, बिना कराहे अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी मानकर चढ़ते रहें ... उसे बिलकुल नज़र अंदाज़ कर दिया जाए ... क्या ये न्यायोचित होगा ? ... क्या हम छोटे मोटे बोनस के हक़दार भी नहीं हैं ?... हमें कम से कम एक आध पोस्ट - मैरिटल अफ़ेअर और एक - दो शारीरिक संबंधों की इज़ाज़त तो दे ही देनी चाहिए ... ताकि हम भी मुक्त मन से नये युग के ताल में ताल मिला सकें ...
जब शादी से पहले वाले लोगों के लिए इस लक्ष्मण रेखा (शादी) की बाध्यता उनकी अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी पर छोड़ दिया गया ... तो क्या उसी रेखा को सफलता से पार कर गए हम लोगों के ज़िम्मेदार होने पर शक है ...
या फिर हमारा हश्र उस होम लोन के ग्राहक की तरह है, जिसने दो साल पहले लोन लिया, और अब घटा हुआ ब्याजदर का फायदा उसे नहीं मिल सकता ... क्यूंकि वो नया ग्राहक नहीं है .....
जब हम अपनी पूरी निष्ठा और ईमानदारी से परिवार और समाज की हर ज़िम्मेदारी को उठा रहें हैं, तो उसी परिवार और समाज को, हमारे इस तुक्ष इक्छा का सम्मान नहीं करना चाहिए ...
भाई सवाल जायज़ था .... सो हम में से किसी के बोल नहीं फूटे .... गोष्ठी का समापन बिना उत्तर पर विचार - विमर्श हुए हो गया .... सबके लटके और मुरझाये थूथन को देख कर मैंने हिम्मत जुटाई, और कहा की ब्लॉग की दुनियां में समझदारों की कोई कमी नहीं है ... जिस सवाल को हम नहीं सुलझा सकें क्यूँ न उनके सामने रखा जाए ... कुछ तो संतोष जनक सुझाव, तसल्ली या फिर नसीहत मिल ही जायेगा ...
तो पाठकों आपसे अनुरोध है की इस सवाल का सही जबाब ढूँढने में हमारी मदद करें ....
ये आपका उपकार होगा चाय - गोष्ठी करने वाले प्रौढ़ मंडलियों पर .....
छड़े और कवारों को तुम, बाँट रहे हो फूल ....
हमने तुम्हरी भैंस लूटी, जो हमें गए तुम भूल ....
बिन ब्याहों को खुली छूट है, लूटैं खूब मज़ा ....
हम ब्याहों ने धरम निभाया, का काटेंगे सज़ा ....
मिस्टर खुरपेंच शास्त्री जी, मेरी सलाह है की ......
ReplyDeleteबिन्व्याहों को देखकर ईर्ष्या करने वाले ब्याहों और बुध्धिमानों आप बेवजह मायूस हो, जैसे प्री-मैरिटल सेक्स को सामाजिक स्वीकृति मिलने जा रही है, वैसे ही बदलते परिवेश में आज नहीं तो कल पोस्ट-मैरिटल सेक्स या अफ़ेअर को भी मान्यता मिल ही जायेगी, यदि तब तक आप में सब्र न हो तो वेश्याओं की तरफ रूख करो, क्योंकि कुछ दिन पहले खबर थी की उन्हें भी इस कार्य के लिए लाईसेंस मिल जाएगा, और आप लोगों के पास already लाईसेंस है, आप बाहर कुछ भी करके आयें, अव्वल तो पता नहीं चलेगा, जो चल भी गया तो पत्नी रुपी लाईसेंस आपको समाज से बचा ही लेगी, तो ईचार - विचार छोड़ो और मज़े लो, तो अब डर कहे का जब बीबी हुई थानेदार ......
कहते है जीवन जीने का नाम है.... यदि इसे सिर्फ सेक्स की नजर से ही देखा जाए तो जनाब आप जब चाहे... जैसे चाहे.. औऱ जहां चाहें.. और जिसके साथ चाहे.. सेक्स कर सकते है... लेकिन एख बात का ध्यान रहे...क्या आप में इतनी हिम्मत है कि सेक्स करने के बाद.. सीना ठोक कर अपनी बीवी और पत्नी के सामने जाकर ये कह सके.. की हां मैंने सेक्स किया है... अब ये न कहिएगा कि ये हो नहीं सकता या फिर.... या बताने की क्या जरूरत है.. जब ये ही काम आपकी पत्नी औऱ बेटी को करें.. तो क्या अच्छा होगा.. या बुरा ये तो आप सोचिए.. लेकिन एक बात ये आपको माननी पड़ेगी.. की जब जबान, जौबन और जवानी आपना अनुशासन खो देती है.. तो वो विकार बन जाती है.. और आयुर्वेद में विकार को दूर करने का एक ही इलाज है.. वो है सात्विक भोजन.. तो मैं तो ये कहूंगा.. आप जैसे लोगों को सात्विक भोजन की जरूरत है.. न कि सेक्स या छुट की..
ReplyDeletejaruri nahi jo insaan chahta hai wo use mil jaye kabhi kabhi apne jazbato par bhi kabu rakhna padta hai apne sacchai likhi hai lekin sacchai bhi ek had tak aachi lagti hai so blog mein aache sabadh bhi likhne chahiye taki galiyo ki jagah aachi aachi bate sunne ko mile but apke dukh ko sarokar karte hai
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