Blogvani.com आपमरूदा....: भांड में जाये दुनियां...हम बजायें हरमुनिया..

Monday, April 5, 2010

भांड में जाये दुनियां...हम बजायें हरमुनिया..

भाई चलो एक और टंटा कटा..सुप्रीम कोर्ट ने ये कह दिया कि लिव इन रिलेशनशिप या प्रिमैरिटल सेक्स को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता..और एक हद तक बात ठीक भी है..वो दो व्यक्ति जिनकी उम्र 18 साल से ज्यादा हो, मतलब बालिग हों, अगर आपसी रजामंदी से साथ में रहें या फिर शारीरिक संबंध बनाएं तो इसमें हर्ज ही क्या है..सेक्स तो शरीर की बुनियादी जरूरत है..उसके लिए शादी जैसे रूढ़िवादी बंधन में बंधने का इंतजार क्यों किया जाए..
प्यास लगी है तो पानी पियो..
भूख लगी है तो खाना खाओ...
और सेम टू सेम ...
अगर ठरक मची हो तो सेक्स करो..
सीधी बात नो बकवास..
पहले तो सभ्यता और समाज का डर हमें मौन धमकियां देता रहता था लेकिन कोर्ट की टिप्पणी ने उसके मुंह पर लीकोप्लास्ट चिपका दिया.. अब कौन रोकेगा और किस हैसियत से रोकेगा..

तो भाईयों पथ अवरोधमुक्त है बढ़े चलो, बढ़े चलो.. लेकिन मैं तुमसे कुछ टिप्स शेयर करना चाहता हूं ताकि इस राह पर बेफिक्र होकर चल सको.. भाई समझे नहीं.. देखो ये ऐसा रास्ता है कि इसके पग-पग पर पूरा मजा लेना जरूरी है.. जो चलते वक्त एक क्षण के लिए भी कोई फालतू की बात दिमाग में आ गई तो मजा किरकिरा हो जाएगा..लो मैं भी निरा बेवकूफ ठहरा.. लजा लजाकर खुलेपन को समझा रहा हूं..तो लो खुल्ले में सुनो..
भाई, जिस लिव इन या प्रीमैरिटल सेक्स की बात अपन कर रहे हैं वहां तक पहुंचना इतना आसान नहीं है.. बड़ी मेहनत करनी पड़ती है.. पहले एक साथी ढूंढो..फिर उसे धीरे धीरे अपनी चाहत बताओ, उसे मानसिक रूप से तैयार करो.. पता नहीं कितने महीने या साल की मेहनत के बाद वो दिन आएगा जब तुम साथ साथ रहोगे या करोगे.. अब ऐसे वक्त में अगर तुम्हारे पिछले जीवन में पड़ा कोई भी नैतिकता का पाठ याद रह गया, जो तुम्हें सो कॉल्ड दो कौड़ी की भारतीय सभ्यता ने सिखाया था, तो समझ लो कि तुम्हारे सालों की मेहनत पर रायता फैल जाएगा..कुछ नहीं कर पाओगे जब तक होश संभलेगा तुम्हारी ब्रॉड माइंड की दुकान लुट चुकी होगी.. हाथ में होगा दद््दू के जमाने का दिया काला, एकल निर्मित, ग्रीस और तेल में लिपटा संकीर्णता का ताला.. "सन 1927.. भारतीय सभ्यता और संस्कृति फैक्टरी, जहीनगंज, रूढ़ाबाद में निर्मित.. पुरानी पीढ़ी द्वारा आने वाली पीढ़ी को सप्रेम भेंट".. जैसे ही नजर ताले के पिछवाड़े पर गुदी इन अक्षरों से टकराएगी.. जी में आएगा कि तुरंत किलो भर के इस ताले से आधे फुट में फैले लिलार को फोड़ दिया जाए.. तो भाईयों जो बचना चाहो ऐसी नौबत से तो आओ देते हैं मुख्य तीन बातों का ध्यान..

1. बुजुर्ग बहिष्कार... चूंकि मानव मन प्रबल इच्छा करने वाला होता है.. अत: तुम्हें 14-15 की आयु से ही इसकी तैयारी में लग जाना होगा.. क्योंकि तुम कहां मानोगे अट्ठाहरवें वर्षगांठ की संध्या से ही तुम जुगाड़ में लग जाओगे.. तो भाई 14-15 की आयु से ही तुम्हारा एक सूत्री काम बुजुर्ग बहिष्कार होना चाहिए.. इसके लिए तुम 14-15 की आयु में आते ही पूरे विवेक और दृढ़ प्रतिज्ञ होकर घर के बुजुर्गों से लगातार तनाव पूर्ण स्थितियां बनाना शुरू कर दो.. उनकी हर संस्कारों के गुणगान की आरती में अपने आधुनिक और खुले सोच का घंटा जोर शोर से घनघनाओ.. ध्यान रहे कि घंटे का स्वर इतना ऊंचा होना चाहिए कि आरती का कोई भी लफ्ज साफ सुनाई न दे.. अन्यथा ताकतवर रूढ़िवादी संस्कारों का सम्मोहन मंत्र तुम्हारे दिलोदिमाग पर हावी होने लगेगा.. कहीं न कहीं इसी माहौल में पले-बढ़े तुम्हारे शरीर का भारतीय खून तुम्हारी उन्मुक्त भावनाओं से दगा कर जाएगा.. मुझे उम्मीद है कि मेरे व्याकुल बंधुओं मेरे टिप्स तुम्हें राहत पहुंचा रहे होंगे..आओ आगे बढ़ें.. अब तक तुम 18 के हो चुके होगे.. इसलिए 18वें साल के पहले दिन से ही तुम एकाग्रचित्त और वकोध्यान से साथी की खोज में जुट जाओ.. देखो भाई चुनाव बिल्कुल निजी मामला है.. तुम्हारी मर्जी पर है अत: मैं इस पर सलाह देना ठीक नहीं समझता..लेकिन ध्यान रहे अगर अपोजिट पार्टी सॉलिड (मतलब बुजुर्ग संस्कारिता रहित) नहीं हुई तो बड़ा टाइम वेस्ट हो जाएगा उसे लाइन पर लाने में.. और अब इतना टाइम कहां है तुम्हारे पास.. 25 तक होते तो शादी, तलाक सब निपट चुका होता है..वैसे एक आयडिया अभी अभी कौंधा है.. भाई 18 से पहले रहना या करना ही तो रिस्की है.. सेलेक्शन में कोई दिक्कत थोड़े ही है.. तो क्यों न 14-15 से ही सेलेक्शन का प्रोग्राम शुरू कर दिया जाए..साथ ही साथ दोनो उन्मुक्त विज्ञान और आधुनिक रिसर्च से न्यूक बॉम्ब बांधते रहो और 18 के होते ही अपने परिवार पर दे मारो.. एक ही झटके में दोनों पोखरन तबाह.. मतलब ये एक फोड़ू तरीका हो सकता है.. और जो ऐसा न हो पाए तो फिर हमें बुजुर्ग बहिष्कार के टैंक में घुसकर ही लड़ाई लड़नी पड़ेगी.. क्योंकि जैसे ही घर के बुजुर्गों को तुम्हारी मंशा का पता चलेगा वो अपनी पूरी ताकत से रूढ़िवादी संस्कारों के जेट पर सवार होकर सामाजिकता और पारिवारिकता का मिसाइल अंधाधुंध दागने शुरू कर देंगे.. और भइया यही वो समय है जब तुम्हारी पिछले सालों की मेहनत तुम्हें इन वारों से कवर देगी.. और जो कोई भी चूक हुई तो तुम्हारा लंगड़ा होना तय है.. फिर देखते रहना आधुनिकता और खुलेपन के स्टेडियम के फट्टे पर बैठकर लिव इन और प्री मैरिटल सेक्स का मनोरंजक फुटबॉल मैच.. क्योंकि अब खेल पाना तुम्हारी किस्मत कहां..

2. निसंकोच प्रदर्शन - वैसे तो ये दोनों पार्टी के लिए काम का है.. लेकिन सो कॉल्ड पुरातन और संकीर्ण भारतीय सामाजिक मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए फीमेल वर्ग इन टिप्स का अचूक फायदा उठा सकती हैं.. इस प्रकरण में सबसे बड़ी विलेन है भारतीय मां.. जो बचपन से ही बेटियों में लोकलाज, सामाजिक व्यावहार, पारिवारिक सम्मान और शारीरिक इज्जत का पाठ पढ़ाती रहती हैं..उनकी एकमात्र खुदगर्जी होती है जवान होते ही पूरी दुनिया उनकी बेटी को सभ्य और सुशील कहे.. उन्हें पता ही नहीं कि आज के खुलेपन में उनके हिसाब की सभ्य और सुशील लड़कियों को बहनजी टाइप कहकर मजाक उड़ाया जाता है..और जब आज मौका मिला है कि अपने मन की कर सकते हैं दादी, नानी, दीदी, चाची, बुआ, मौसी या फिर खुद वो गाहे बगाहे जिस एक इच्छा को सामाजिक बंधनों के प्रति जिम्मेदार होने के कारण दबाती रही हैं उसे पूरा किया जा सकता है.. तो क्या ये बुद्धिमानी है कि सभ्यता और शालीनता के चक्कर में पड़कर जिंदगी भर के लिए एक टीस सीने में दबाकर रखी जाये.. उन्हें ये क्यों नहीं समझ में आता है कि चोर चोर मौसेरे भाई.,. जब सभी एकजुट होकर खुलेपन का बिगुल फूंकेंगे तो सभ्यता और शालीनता की परिभाषा बदलने में टाइम कितना लगेगा..सच्चाई तो ये है कि परिभाषा काफी कुछ बदल भी चुकी है, जरूरत है संस्कार और लोकलाज के चश्मे को उतारकर इसे पढ़ने की.. तो बहनों न..न.. माफ करना (जूतियां बज जाएंगी, मैं भी क्या नि:संकोची होने का टिप्स संकोची होकर दे रहा हूं).. हां तो सखियों.. चलो बिल्कुल साफ तरीके से बताता हूं... जो आप लिव इन रह रही हो और प्री मैरिटल सेक्स की इच्छा से ग्रसित हो तो किसी भी सूरत में अपने ऊपर संकोच (मां के पाठ) को हावी न होने दो.. ये आपकी राह में इतने कांटे बिछा देगा कि आप आत्मग्लानि रूपी कैंसर की मरीज हो जाओगी.. जीवन नर्क हो जाएगा आपका.. और ध्यान रहे, वर्जिनिटी का ख्याल तो सपने में भी न आए.. वो आपकी राह का रोड़ा है ही नहीं आने वाले समय में.. अब आप सोच रही होंगी कि जिन चीजों का जिंदगी में कोई फिजीकल एक्सिस्टेंस नहीं है उस पर तो इसने भड़ाभर तर्क दिए.. और वर्जिनिटी जो फिजिकल सबूत हो सकती है, उस पर लपेट कर निकल रहा है..तो आओ क्लियर कर देता हूं.. वैसे इसे फेस करने के बहुत से संतुष्टिदायक और वैज्ञानिक तौर पर सिद्ध बहाने हैं.. पर फिर भी अगर आप अपनी जीवन डगर के पहले पग की बुनियाद झूठ पर नहीं रखना चाहतीं.. सच्चाई की प्रतिमूर्ति बनना चाहती हैं तो भी कोई समस्या नहीं है.. क्योंकि आप ये क्यों भूल जाती हैं हम सभी काजल की कोठरी में होंगे.. फिर सामने वाला किस मुंह से कोई सवाल कर पाएगा.. कई जगह मुंह मारने के बाद भी उसकी शादी हो गई ये कम है कि फालतू के सवालों में फंसकर और अपनी ही भद्द करवाए.. वो दो चार साल आगे सामाजिक सर्टिफिकेट के साथ जीने का मजा लेगा या फिर अपने चरित्रहीन हाथ की उंगली सामनेवाली के चरित्र पर उठाएगा.. मुझे तो लगता है कि चरित्रवान होने की परिभाषा भी बदल जाएगी.. जो व्यक्ति चार-पांच लिव इन और 100-200 प्री मैरिटल सेक्स संबंधों से पूर्ण संतुष्ट होने के बाद दाम्पत्य सूत्र में बंधे, और तलाक होने तक संयम बरतते हुए एकल सहवासी हो, वो चरित्रवान होगा..
अत: हे बांधवों, अगर रूढ़िवादी सामाजिक मान्यताओं लोकलाज और हमारी सो कॉल्ड संपन्न संस्कृति की तुलना में, एक बुनियादी शारीरिक जरूरत और सिर्फ अपने मन को संतुष्ट करने वाले सहगामी परीक्षण की थोड़ी सी भी कद्र हो तो ऐसा करते समय उन्मुक्त और निसंकोच प्रदर्शन तुम्हें एक दूसरे के प्रति ईमानदार बनाएगा.. अन्यथा खाया पीया कुछ नहीं गिलास तोड़ा 12 आना..

3. गले की घंटी- ये बड़ा ही व्यावहारिक और दिमाग के सारे दरवाजे खोलकर समझने वाला टिप है.. देखो भाई ऊपर लिखित दोनों टिप्स बेशक लिव इन और प्रीमैरिटल सेक्स के लिए अचूक फॉर्मूले हैं.. लेकिन इसमें एक खतरा भी है जिसका संबंध न तो जीर्ण शीर्ण पड़ती परम्परा या दम तोड़ती संस्कृति और सामाजिक मान्यताओं से है.. और न ही हमारी शारीरिक संतुष्टि से.. इसका सीधा संबंध अपनी खुद की अंतरात्मा से है.. एक बार को हम पूरी दुनिया से दगा कर सकते हैं लेकिन अपने से दगा कर हमें जीवन भर बेचैन रहना होगा.. फिर दुनिया का कोई भी शारीरिक या भौतिक सुख हमें इस धर्मसंकट से उबार नहीं सकता.. अत: हे काया पिपासुओं जो इस धर्मसंकट में न पड़ना चाहो ध्यान रहे.. लिव इन में शारीरिक संबंध बनाते हुए अपने परीक्षण की समाप्ति से पूर्व.. एक क्षण के लिए भी साथी में विश्वास न करो.. अपनी तरफ से 200 फीसदी एहतियात रखो ताकि भविष्य में कोई अप्रिय या विचलित करने वाली घटना की घंटी न टनटनाए.. क्योंकि एक बार ये घंटी बजी और समझ लो तुम्हारे जीवन का घंटा बज जाएगा.. मैं भी उस वक्त तुम्हें मजबूर और लाचार कोने में से घंटी पहनने की ही सलाह दे रहा होऊंगा.. तुम्हें प्रेरणा स्रोत मानने वाले तुम्हारे जूनियर्स चुपचाप भीगी आंखों से तुम्हारे बलिओत्सव में शरीक होंगे.. और तुम्हें संस्कृति एवं पौराणिक मान्यताओं के मकड़जाल के खिलाफ छिड़े जिहाद का नायक मानने वाले तुम्हारे सीनियर्स, चेहरे पर बनावटी हंसी लिए तुम्हें फंासी (बेमन की शादी) के तख्ते पर धकेल रहे होंगे और कुछ महीनों बाद बर्थ सर्टिफिकेट पर अपना नाम बाप की जगह लिखा देखते हुए ड्रामे का पटाक्षेप होगा.. इतिहास तुम्हें सिर्फ शहीदों में दर्ज कर अपना पीछा छुड़ाएगा.. तुम्हारे गले वो घंटी होगी जो जिंदगी भर टन टन कर तुम्हारे असफल परीक्षण की याद दिलाएगी..इन सबके अलावा कलेजाफाड़ होगा साथी का आरोप कि तुम्हारे चक्कर में वो भी अधूरी रह गई या रह गया.. कैसी विकट परिस्थिति होगी.. हाय..हाय.. मुझे तो सोचकर भी डर लगता है.. अब तुम लोगों में से कई लोग सोच रहे होगे कि कैसा पुरातन मानव है मामूली बात पर ज्ञान पेले पड़ा है.. इसे इतना भी नहीं मालूम कि मात्र 5000 रुपए का खर्च और सब मुश्किलों से निजात..तो बांधवों ऊपर अंतरात्मा वाली लाइन को याद करो.. माथा ठनक गया होगा.. नहीं ठनका तो सुनो.. हम लोग पढ़े लिखे लोग हैं और यही वो कारण है कि हम बेड़ियों को तोड़ खुले आसमान की सैर करना चाहते हैं.. फिर क्या तुम्हें लगता है कि जाहीलपन की उपज भ्रूण हत्या जैसा जघन्य अपराध हम जैसे स्वस्थ और शिक्षित मानसिकता के लोग आराम से पचा लेंगे.. जब जब आईने के सामने खड़े होंगे खुद पर थूकने का मन नहीं करेगा.. फिर कभी किसी भ्रूण हत्या के खिलाफ परिचर्चा में आवाज फूटेगी हमारी.. घृणा नहीं होगी अपने जीने से.. चलो मान लेते हैं कि हम समझदार मर्द लोग हैं.. हर परिभाषा अपने हिसाब से तय कर लेंगे.. कोई न कोई जुगाड़ निकाल ही लेंगे.. लेकिन भाई उन बिन ब्याही माँओं का क्या करोगे जिनका मातृत्व प्रेम कभी जाहिल और अक्लमंद में फर्क नहीं करता.. घंटी बजते ही फूट पड़ेगा.. और तुम्हारी सारी मतलबी परिभाषाओं के चीथड़े फाड़ देगा.. माना कि कलयुग खत्म होकर ये महाभ्रष्ट युग है, खुलेपन और स्वतंत्रता की आड़ में हम बड़े आराम से हर रिश्ते को बेइज्जत कर देते हैं.. लेकिन भाई माँ का अपनी कोख से प्रेम खत्म हो, अभी उस युग को आने में देर है.. मुझे नहीं लगता कि ऐसा कोई युग हो सकता है.. यकीन नहीं है तो जानवरों को देख लो.. हम जिस खुले युग की खोज में हैं पता नहीं कब से वो उसमें जी रहें हैं.. दरअसल, वो उससे भी आगे हैं.. कोई शादी वादी नहीं..पूरा जीवन प्रीमैरिटल सेक्स और लिव इन पर ही टिका है.. लेकिन वहां भी मातृत्व प्रेम का उपहास शायद कुछ ही प्रजातियों में ही देखा जाता है.. ओह मैं सैंटी हो गया... (ये भारतीय समाज का लालन-पालन मेरा बेड़ा गर्क करेगा.. नए समाज में लोग मुझे शक की निगाह से देखेंगे).. अरे डोंट टेक इट अदरवाइज.. मैं तो मामले की गंभीरता समझा रहा था.. हां हम बात कर रहे हैं कुंवारी माँओं की.. अरे भाई क्या कहना और सलाम नमस्ते जैसी फिल्मों ने इनके हौसले को और बुलंद कर दिया है.. पहले सामाजिक स्वीकृति का डर जो अमूमन इनके मातृत्व प्रेम पर भारी पड़ता था.. अब इन फिल्मों ने उसका भी असर ढीला कर दिया.. सो स्वांत:सुखाय चिंतितों.. एक बात समझ लो जो अगर चाहते हो जीवन में झंझटों से मुक्त होकर लिव इन और प्रीमैरिटल सेक्स का आनंद, तो इन टिप्स को अक्षरश: रट लो.. और यार इसमें दिक्कत क्या है सरकार करोड़ों बहा रही है ये समझाने के लिए.. एक पंथ दो काज.. न कोई बीमारी का खतरा, न गले की घंटी..

देखो भाई ये तो थे तीन मुख्य बातें, लेकिन जैसा मैं पहले जिक्र कर चूका हूँ की हम पढ़े लिखे समझदार लोग हैं..सो हमारी ज़मीर भटाक से जाग जाती है..अतः हे आपमरूदों..दृढ निश्चयी हो इस मार्ग पर आगे बढ़ो..आओ प्रण करें की हमारी सभ्यता और संस्कृति का बड़े से बड़ा नुकसान भी हमें हमारे मार्ग से न डिगाए..हम ओबामा को हर उस समय शक की निगाह से देखे जब जब वो अमेरिकी बच्चों को भारतीय संस्कृति की दुहाई दे ... उसकी हर ऐसी कोशिश को अंतर राष्ट्रीय साजिश समझे, की वो चाहता ही नहीं है की हम भी विकसित हों..खुद तो न जाने कितने सालों से खुलेपन और हर प्रकार के शारीरिक उपभोग का मज़ा ले लिया ...जब हमारी बारी आई तो हमें दिग्भ्रमित कर रहें हैं ये कहकर की हम ऐसी ज़िन्दगी से त्रस्त हैं..और भारतीय संस्कृति व सामाजिक परिवेश हमें आकर्षित कर रहें है .... ध्यान रहे ...हमें हर हाल में ऐसे चिकनी चुपड़ी बातों से परहेज रखना है ... अव्वल तो हमें ये अपने दिमाग में ठोंक लेना चाहिए के ये लोग कतई नहीं चाहते की भारत भी कभी, खुले बिन लगाम वाले दिमाग से , उन्मुक्त कामुक भावनाओं के साथ, तथाकथित संकीर्णता का प्रतीक हमारे भारतीय सामाजिक रहन सहन की छाती पर सकीरा डांस करते हुए इनका मुकाबला करें...

तो स्वार्थंधों अब निर्णय तुम्हें करना है ....उम्मीद है मेरे टिप्स तुम्हारे मार्ग को और प्रशस्त करेंगे ....

खुर्पेंचूं का नुस्खा है, अमल तुम्ही पे भाई ..
एक तरफ वही पपीता , दूजी सड़ी मिठाई ...
बिन सोचे तुम स्वाद लो , और समझो इसे मलाई...
सोच के तुम पछताओगे, की मैंने क्यूँ न खाई ....

1 comment:

  1. बकवास को लंबा कैसे किया जाता है कोई आपसे सीखे।

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